दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत बनाने और आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए चीन, काबुल के साथ अफगानिस्तान में मिलिट्री बेस बनाने को लेकर बातचीत कर रहा है. ड्रैगन को इस बात की चिंता है कि अफगानिस्तान से आए आतंकी चीन में तेजी से पांव पसार रहे हैं. एक अफगान अधिकारी ने इस बारे में कहा कि चीन अपने घायल पड़ोसी देश को मजबूत बनाना चाहता है.
बीजिंग को डर है कि ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के ऊइगर सदस्य हमले के लिए अफगानिस्तान के वाघान के रास्ते चीन के शिनजियांग प्रांत में घुसपैठ कर रहे हैं. अफगानिस्तान में बेस बनाने को लेकर पैदा हुई चीन की दिलचस्पी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आर्थिक और भौगोलिक महत्वाकांक्षाओं का विस्तार है.
इस आर्मी कैंप को अफगानिस्तान के दूरस्थ पहाड़ी इलाके वाखान कॉरिडोर में बनाया जाएगा. एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक इलाके में चीनी और अफगान सैनिकों को संयुक्त पैट्रोल करते हुए देखा गया है.
इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि अफगानिस्तान और भारत के रिश्ते के हाल के वर्षों में बड़ी तेजी मजबूत हुए हैं. भारत वहां मानवीय कार्यों और ढांचागत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, लेकिन नई दिल्ली की ओर से कोई सीधा सैन्य हस्तक्षेप नहीं है.
बता दें कि चीन दक्षिण एशिया में इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. अस्थिर अफगानिस्तान क्षेत्र की सुरक्षा के लिए हमेशा से खतरा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि अफगानिस्तान में किसी भी तरह के हस्तक्षेप को सुरक्षा के प्रिज्म से देखा जाना चाहिए.
विशेषज्ञों का कहना है कि इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट ग्रुप के आतंकी सेंट्रल एशिया और शिनजियांग पार करके अफगानिस्तान पहुंच सकते हैं. या फिर वाखान पार करके चीन पहुंच सकते हैं. सुरक्षा के नजरिए से यह चिंता की बात है.
अफगानिस्तान रक्षा मंत्रालय के उप प्रवक्ता मोहम्मद रडमनेश ने कहा, ‘दिसंबर में अफगानिस्तान और चीन के अधिकारियों ने बीजिंग में इस बारे में बातचीत की थी. हालांकि इस बारे में कई अन्य चीजें स्पष्ट होनी बाकी हैं.’
उन्होंने एएफपी से कहा, ‘हम बेस बनाने जा रहे हैं, लेकिन चीन सरकार इस भूभाग को आर्थिक मदद देने के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ है. साथ ही वे अफगानिस्तान को हथियार भी मुहैया कराएंगे और सैनिकों को प्रशिक्षित करेंगे.’
काबुल स्थित चीनी दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बीजिंग अफगानिस्तान में अपनी क्षमता बढ़ाने में लगा है.
हालांकि अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी अगुवाई वाले सैनिक संगठन नाटो ने अभी तक किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने पूर्व में अफगानिस्तान में चीन के हस्तक्षेप का स्वागत किया है.
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