सरकार जीएसटीएन द्वारा जेनरेट किए जाने वाले ई-वे बिल को फास्टैग के नंबर के साथ जोड़ने जा रही है। इससे किसी माल के नियत स्थान के बजाय कहीं और जाने की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी। अगर ऐसा किया जाता है तो ट्रांसपोर्टर पकड़ में आ जाएगा।
नेशनल हाईवे पर टोल के इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फास्टैग में रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (आरएफआईडी) तकनीक का प्रयोग होता है। इस प्रणाली में हर वाहन को एक विशिष्ट नंबर दिया जाता है। इससे नेशनल हाईवे पर 400 से ज्यादा टोल बूथों पर उसे ट्रैक किया जा सकता है।
बड़े वाहनों में फास्टैग अनिवार्य
सरकार ने 1 दिसंबर, 2017 के बाद बेचे जाने वाले चार या उससे ज्यादा पहियों वाले वाहनों के लिए फास्टैग या आरएफआईडी टैग अनिवार्य कर दिया है। इसके बाद से फास्टैग की संख्या साढ़े सात लाख से बढ़कर 14 लाख से ज्यादा हो गई है।
क्या होगा लाभ
फास्टैग जीएसटीएन या अन्य प्रवर्तन एजेंसियों को नेशनल हाईवे पर वाहन के रूट की जानकारी दे सकता है। अगर कोई वाहन बीच में फंस जाता है तो ई-वे बिल में माल के पहुंचने के घोषित समय को बढ़ाने की गुहार लगाई जा सकती है।
अगर कोई वाहन गंतव्य के बजाय कहीं और चला जाता है तो इसकी भी जानकारी हासिल की जा सकती है। इन टैग में वाहन के रजिस्ट्रेशन नंबर, चेसिस नंबर, इंजिन नंबर जैसी कई जानकारियां दर्ज होती हैं। इसके अलावा वाहन के उत्सर्जन एवं बीमा से संबंधित जानकारियां भी इसमें रखी जा सकती हैं।