भारत ने जो गलती सुखोई विमान बनाते वक़्त कि थी वो अब पांचवे जनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट्स में नहीं करेगा. असल में सुखोई विमान के वक़्त रूस ने भारत को पूरी टेक्नोलॉजी नहीं बताई थी जिसके कारण भारत घरेलू स्तर पर अपनी उत्पादक क्षमता में इजाफा नहीं कर पाया था. अब भारत ने रूस के साथ अरबों डॉलर की परियोजना पर काम शुरू करने से पहले शर्त रख दी है. भारत ने कहा कि वह काम तभी शुरू करेगा जब रूस पूरी टेक्नॉलजी का ट्रांसफर करेगा. रक्षा मंत्रालय का मानना है कि इससे हमें स्वदेशी एयरक्राफ्ट्स तैयार करने में मदद मिलेगी.रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यह फैसला शीर्ष स्तर से लिया गया है, हम सुखोई-30MKI जेट वाली गलती दोहराना नहीं चाहते. गौरतलब है कि चौथी जनरेशन के सुखोई विमान प्रोजेक्ट कि कीमत 55,717 करोड़ रुपये थी. इस डील में भारत की ओर से सबसे बड़ी गलती यह हुई थी कि वह रूस से पूर्ण तकनीकी हस्तांतरण नहीं कर पाया था.
भारत के लिए नए लड़ाकू विमान की डील बेहद जरूरी है. चौथे जेनरेशन के सुखोई विमान को भारत ने रूस सरकार से 55,717 करोड़ रुपये खर्च कर खरीदे थे. रूस से खरीदे गए 272 सुखोई विमान में 240 विमान की एसेंब्ली का काम सरकारी एचएएल ने किया. लेकिन पूरी टेक्नोलॉजी न मिलने के कारण एचएएल पूरी तरह से विदेशी पुर्जो निर्भर रहे. इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि एचएएल द्वारा एसेंबल किए गए सुखोई विमान पर लागत 450 करोड़ रुपये आती है और रूस में बने सुखोई को भारत 350 करोड़ में खरीद सकता है.