पटना विश्वविद्यालय ने इसी हफ्ते अपने अधिसूचना पत्र में कहा कि वह देवघर के हिंदी विद्यापीठ द्वारा दी गई डिग्रियों को मान्यता नहीं देगा। यह राज्य सरकार के जनवरी 1991 में लिए गए फैसले के अनुरूप लिया गया है। पहले विश्वविद्यालय विघापीठ द्वारा दी जाने वाली प्रवेशिका, साहित्यबन्दधु और साहित्यलनकार की डिग्रियों को मान्यता देता था और उन्हें मैट्रिक इंटर और स्नातक की डिग्रियों के बराबर ही मानता था।
लेकिन जिन्हें पटना विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता दी गई है वह डिग्री प्राप्तकर्ता नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने के हकदार हैं। कोर्ट का यह फैसला केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा मई 1998 में जारी परिपत्र पर आधारित है। जिसमें यह कहा गया था कि स्वैच्छिक संगठनों द्वारा दिए जाने वाले सर्टिफिकेट, डिग्री और डिप्लोमा को मैट्रिक, इंटर और स्नातक की डिग्रियों के बराबर नहीं माना जाएगा।
इससे देवघर स्थित हिंदी विद्यापीठ से पढ़ाई करने वाले छात्रों को झटका लगा है। राज्य के किसी भी नौकरी और प्रमोशन में इस संस्थान से हासिल किए गये मैट्रिक, इंटर और स्नातक की प्रमाण पत्रों को राज्य सरकार ने अमान्य करार दिया है। लेकिन नीतीश सरकार ने केवल 7 मई 2012 से पहले वाले सर्टिफिकेट को ही सही माना है जबकि अन्य को अमान्य करार दिया है। पटना उच्च न्यायालय के मई 2012 में लिए गए फैसले के अनुरूप ही 2016 में राज्य सरकार ने विद्यापीठ द्वारा दी जाने वाली डिग्रियों को मान्यता देने से इंकार कर दिया।
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