मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) ने शोध की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से दिए जाने वाले वजीफे के प्रारूप में बड़ा बदलाव किया है। अब तक विश्वविद्यालय में शोध कर रहे 15 विद्यार्थियों को वजीफे के रूप में 25 हजार दिए जाते थे लेकिन अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस को आधा यानी 12500 रुपये करके उसे 30 शोधार्थियों में वितरित करने का फैसला किया है। इस फैसले से विश्वविद्यालय के लगभग सभी विभागों के दो-दो शोधार्थियों को वजीफे की रकम दी जा सकेगी।
नए सत्र से लागू होगा फैसला
विश्वविद्यालय का यह फैसला नए सत्र से प्रभावी होगा। ऐसे में बीते सत्र तक शोध में पंजीकृत विद्यार्थी इस दायरे में नहीं आएंगे। उन्हें पहले की तरह वजीफे के रूप में 25 हजार रुपये मिलते रहेंगे। नए फैसले के प्रभावी होने के बाद भी शोध में पंजीकृत उन छात्रों को वजीफे के तौर पर दिए जाएंगे, जिनसे विश्वविद्यालय प्रशासन अध्यापन का कार्य लेगा। अध्यापन का कार्य केवल शोध के दौरान दूसरे और तीसरे वर्ष में ही लिया जाएगा। जबकि वजीफे की राशि चार वर्ष तक दी जाएगी। चार वर्ष तक यदि शोध कार्य पूरा नहीं होता, वजीफा बंद कर दिया जाएगा।
विद्या परिषद और प्रबंध बोर्ड की बैठक के बाद होगा प्रभावी
बीते दिनों हुई शोध गुणवत्ता कमेटी की बैठक में इसे लेकर सहमति बन चुकी है। 19 जून को विद्या परिषद और 26 जून को प्रबंध बोर्ड की बैठक में इसे प्रभावी करने की औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी।
वजीफे के लिए विश्वविद्यालय ने जुटाए 11 करोड़
अभी तक विश्वविद्यालय को वजीफे की रकम तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम के तहत विश्व बैंक और मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से दी जाती थी पर सितंबर से यह करार समाप्त हो रहा है। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे जारी रखने के लिए खुद की व्यवस्था की है। इसके लिए विभिन्न माध्यमों से विश्वविद्यालय ने 11 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
हर विभाग के शोधार्थी होंगे लाभान्वित
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास सिंह का कहना है कि परिसर में शोध का माहौल बनाने और संख्या के साथ शोध गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से दिए जाने वाले वजीफा नियमों में बदलाव किया गया है। नए नियम के लागू हो जाने से विश्वविद्यालय के हर विभाग के शोधार्थी लाभान्वित हो सकेंगे। शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा।