बॉडी में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने की वजह से लोगों को गठिया का रोग होता है। पहले ऐसा माना जाता था कि ये रोग उम्र बढ़ने के साथ लोगों को होता है लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में पाया गया कि ये रोग कम उम्र में भी लोगों को अपना शिकार बना रहा है। अगर आप भी ऐसे ही रोग से पीडित हैं तो आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने आपकी परेशानी दूर कर दी है। 
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आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने सिल्क-प्रोटीन एवं बायोऐक्टिव ग्लास फाइबर से बनी एक चटाई तैयार की है। उनका मानना है कि यह चटाई हड्डी की कोशिकाओं में वृद्धि कर गठिया के रोगियों में घिस चुके उनके जोड़ों की हड्डियों की मरम्मत कर सकती है।
अधिकतर घुटने, कुल्हे, हाथ, पैर एवं रीढ़ की हड्डी में जोड़ों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी को अस्थि एवं उपास्थि के जोड़ के विकार से भी जाना जाता है। उपचार नहीं होने से यह भयंकर दर्द, सूजन पैदा कर सकता है और परिणामस्वरूप चलना फिरना सीमित हो सकता है।
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (आईआईटीजी) से बिमान बी मंडल ने पीटीआई-भाषा को बताया कि चटाई के लिये वैज्ञानिकों ने पूर्वोत्तर भारत में आसानी से मिलने वाले सिल्क के एक किस्म का इस्तेमाल किया।’’ उन्होंने बताया, ‘‘मूगा (असम) सिल्क में ऐसे गुण विद्यमान हैं जो रोग से निदान की प्रक्रिया में तेजी लाते है।’’ बहरहाल, मरीजों तक इसकी पहुंच सुलभ करने से पहले अभी इस चटाई का चूहों या सुअरों जैसे उपयुक्त पशुओं पर परीक्षण किये जाने की आवश्यकता है और फिर अंत में इसका मानव पर प्रयोग किया जायेगा।
भारत में हड्डी एवं जोड़ों की बीमारी सबसे आम है। हालांकि मंडल ने यह उल्लेख किया कि मौजूदा क्लिनिकल निदान बेहद महंगा है।
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