उत्तराखंड और हिमाचल की सीमा पर गुमा अंतरोली में हुई बस दुर्घटना सोचने को विवश कर रही है कि तंत्र अपनी जिम्मेदारी को वाकई में कितनी संजीदगी से निभा रहा है। उत्तराखंड की निजी कंपनी की इस बस में सैंतीस सीटों के मुकाबले सैंतालीस सवारियां थीं, जिनमें से पैंतालीस काल का ग्रास बनीं। हादसे में कुछ परिवारों के चिराग बुझ गए तो कुछ के मुखिया चले जाने से परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उन्हें भविष्य की तस्वीर धुंधली दिखाई पड़ रही है।
दरअसल, यह सामान्य हादसा नहीं, बल्कि जानबूझकर सवारियों को मौत का सफर कराने जैसा रहा। दुर्घटना से पहले बस में दो बार खराबी आई, एक बार पहाड़ी से लुढकते-लुढकते बची फिर भी गंतव्य तक जाने की जिद यही साबित करती है। कहने में कोई संकोच नहीं कि परिवहन कंपनियों के लिए शायद जिंदगी का कोई मोल नहीं, अन्यथा पर्वतीय इलाकों की सर्पीली सड़कों पर इस तरह का जोखिम लेने में की हिमाकत कतई नहीं करते।
इस स्थिति के लिए सरकारी तंत्र भी उतना ही जिम्मेदार है। ओवरलोडिंग, अनफिट गाडिय़ों का संचालन, ओवरस्पीड और मादक पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चलाने जैसी समस्याओं पर तंत्र की चुप्पी सवाल खड़े कर रही है। आए दिन इस पर बहस-मुबाहिसों का दौर चलता हैं, लेकिन सबक नहीं लेते। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन इसकी बड़ी कीमत आमजन को कभी पूरा न होने वाले नुकसान के रूप में चुकानी पड़ रही है।
हर साल तकरीबन एक हजार लोग इन्हीं की वजह से अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं। विडंबना यह कि तंत्र हादसे के बाद लकीर पीटने की आदत से बाज नहीं आ रहा है। हर बार मौका मुआयना और तकनीकी जांच जैसे जुमले उछालकर अपनी नाकामी को छिपाने के प्रयास किए जाते हैं। सवाल यह कि यह बस हादसे के बाद क्यों, इन सभी पहलुओं पर समय रहते क्यों नहीं ध्यान दिया जाता। इन पर अंकुश लगाना पुलिस, प्रशासन और परिवहन विभाग की जिम्मेदारी का हिस्सा है, ये बात जाने क्यों समझ में नहीं आ रही।
सड़कों पर सुरक्षा के मानकों को लेकर भी इसी तरह का रवैया है, ज्यादातर पहाड़ी मार्गों पर क्रैश बैरियर और पैराफीट बने ही नहीं है, जबकि सुरक्षा मानकों मेंं इनकी अनिवार्यता है। हादसों की यह भी बड़ी वजह सामने आती है। यह नहीं भूलना होगा कि केवल चिंता जताने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला, दायित्वों के प्रति ईमानदारी दिखानी होगी। अगले कुछ दिनों में चारधाम यात्रा शुरू होने वाली है, उम्मीद की जानी चाहिए कि अब तक घटनाओं से सबक लेकर जिम्मेदार तंत्र जरूरी कदम उठाएगा।