दिल्ली सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के 28 कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी का गठन नहीं होने पर सारे फंड को रोकने का आदेश जारी किया है। उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी है। सिसोदिया ने इस बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ किए गए पत्राचार की कॉपी भी शेयर की है।SBI खाताधारकों के लिए बुरी खबर, Fixed Deposit पर अब नहीं मिलेगा ज्यादा ब्याज
दूसरी तरफ डीयू के रजिस्ट्रार तरुण दास ने इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं, डीयू के शिक्षक संगठन एकेडमिक फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (एएडी) ने इस फैसले को विश्वविद्यालय के मामले में दखल का आरोप लगाते हुए विरोध किया है, जबकि दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने इसे छात्र विरोधी कदम बताते हुए सात अगस्त से आंदोलन की चेतावनी दी है।
दरअसल, दिल्ली सरकार 28 कॉलेजों को सालाना करीब 350 करोड़ रुपये का फंड देती है। दिल्ली सरकार ने डीयू को अल्टीमेटम दिया था कि 31 जुलाई तक गवर्निंग बॉडी का गठन कर लिया जाए। ऐसा नहीं होने पर सरकार फंड रोक देगी। लेकिन नियत तिथि तक इसके गठन नहीं होने से सरकार ने फंड रोकने का आदेश जारी कर दिया है।
सिसोदिया का कहना है कि शिक्षा के नाम पर दिल्ली सरकार के पैसों के इस्तेमाल में अनियमितता और भ्रष्टाचार नहीं होने दे सकते। सिसोदिया का आरोप है कि डीयू प्रशासन जानबूझकर व गलत नियत से गवर्निंग काउंसिल के गठन में देरी कर रही है। बीते करीब एक साल से इसे लटकाया जा रहा है।
शिक्षक संगठन एएडी ने किया विरोध
गौरतलब है कि सितंबर 2016 में दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को खत लिखकर गवर्निंग काउंसिल के पैनल के सदस्यों के लिए नाम मांगे थे। देरी के बाद नवंबर 2016 में दोबारा रजिस्ट्रार को खत लिखकर नाम भेजने की बात कही।
विश्वविद्यालय से जवाब नहीं मिलने पर शिक्षा विभाग ने दिसंबर 2016 और 1 फरवरी 2017 को फिर से रजिस्ट्रार को चिट्ठी लिखी। इसके बाद भी पत्राचार होता रहा। हाल में ही 6 जुलाई को एग्जीक्यूटिव काउंसिल की प्रस्तावित बैठक भी टाल दी गई।
डीयू के शिक्षक संगठन ऐकेडमिक फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (एएडी) ने इस फैसले को विश्वविद्यालय के मामले में दखल का आरोप लगाते हुए विरोध किया है। एएडी का कहना है कि दिल्ली सरकार वित्तीय राशि देने पर रोक न लगाए। नये सत्र की शुरुआत में सामान्य स्थिति बहाल रखी जाए। सरकार के फंड रोकने के फैसले से पठन-पाठन की प्रक्रिया बाधित होगी और छात्रों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा।