कहते हैं जो इंसान सक्सेस है उसकी जिंदगी संघर्ष से भरी होती है। ऐसा ही संघर्षों से भरा जीवन बीता देश के नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का। उत्तरप्रदेश के कानपुर के दलित परिवार में जन्में कोविंद आज भले ही राष्ट्रपति बन गए हैं 
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पूरा बचपन गरीबी में बीता है। वह कानपुर देहात की डेरापुर तहसील स्थित परौंख गांव से ताल्लुक रखते हैं। गांव वालों का कहना है कि कोविंद घास-फूस की झोपड़ी में रहते थे। वे इतने गरीब थे कि अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाई और स्कूल जाने के लिए उनके पास वाहन का किराया देने का भी पैसा नहीं था।
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कोविंद के दोस्त बताते हैं कि कोविंद को स्कूल जाने के लिए 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। कहते हैं ना यूं ही नहीं मिल जाती मंजिलें किसी को, मंजिल पाने के लिए हौलसे बुलंद होनी चाहिए। कोविंद के साथ पढ़ने वाले उनके दोस्त जसवंत ने बताया कि जब उनकी उम्र 5-6 थी तो उनके घर में आग लग गई थी जिसमें उनकी मां की मौत हो गई थी। मां का साया छिनने के बाद उनके पिता ने ही उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने बताया कि गांव में अभी भी कोविंद के दो कमरे वाला घर है। जिसे कोविंद ने बारातशाला को दान में दे दिया था।
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बेहद सामान्य पृष्ठभूमि वाले कोविंद अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर इस बुलंदी तक पहुंचे हैं। कोविंद की पसंद-नापसंद के बारे में उन्होंने बताया कि वह अंतर्मुखी स्वभाव के हैं और सादा जीवन जीने में विश्वास करते हैं। उन्हें सादा भोजन पसंद है और मिठाई से परहेज करते हैं।
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