लाहौर| मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड और जमात-उद-दावा (जेयूडी) प्रमुख हाफिज सईद और उसके चार साथियों को ‘जिहाद के नाम पर आतंकवाद’ फैलाने के लिए गिरफ्तार किया गया है। यह स्वीकारोक्ति पाकिस्तान के संघीय आंतरिक मंत्रालय ने न्यायिक समीक्षा बोर्ड के समक्ष की है।
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पुलिस ने शनिवार को सईद और उसके चार साथियों को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एजाज अफजल खान की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय न्यायिक समीक्षा बोर्ड के समक्ष पेश किया। इस बोर्ड में लाहौर हाई कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस आयशा ए. मलिक और बलूचिस्तान हाई कोर्ट के न्यायाधीश जमाल खान मंडोखेल भी शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान सईद के वकील एके डोगर भी मौजूद थे, लेकिन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक ने अपनी पैरवी खुद करने का फैसला किया। सईद ने बोर्ड के समक्ष कहा कि सरकार की ओर से उसके खिलाफ लगाए गए आरोप कभी भी कोई सरकारी संस्था साबित नहीं कर पाई है। उसे और उसके संगठन को कश्मीर की आजादी की आवाज उठाने और इस मसले पर सरकार की कमजोर नीति की आलोचना करने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है।
उसने अपनी याचिका में भी कहा है कि पाकिस्तान सरकार ने उसकी और उसके साथियों की गिरफ्तारी का कदम भारत और अमेरिका को खुश करने के लिए उठाया है, लेकिन पाकिस्तानी आंतरिक मंत्रलय ने उसकी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। हालांकि, मंत्रलय ने बोर्ड के समक्ष यह जरूर स्वीकार किया कि उनकी गिरफ्तारी संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दबाव में ही की गई है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बोर्ड ने 15 मई को होने वाली मामले की अगली सुनवाई में आंतरिक मंत्रालय को सईद और उसके चारों साथियों (जफर इकबाल, अब्दुल रहमान आबिद, अब्दुल्ला उबैद और काजी कासिफ नियाज) की गिरफ्तारी पर पूरे रिकॉर्ड दाखिल करने का निर्देश दिया।
आपको बता दें कि इस कारवाई से ये साफ़ है कि पाकिस्तान ने कुबूल कर लिया है कि हाफ़िज़ सईद आतंकवाद फैला रहा है| ऐसा करने से आतंवाद पाल रही पाकिस्तान पर भी आतंक का कहर टूटना तय है|
30 जनवरी से नजरबंद है मुंबई हमले का मास्टरमाइंड
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने 30 जनवरी को सईद और उसके चारों साथियों को नजरबंद कर लिया था। इसके बाद 30 अप्रैल को उनकी गिरफ्तारी की मियाद 90 दिन के लिए बढ़ा दी गई थी, लेकिन पिछले गुरुवार को लाहौर हाई कोर्ट की खंडपीठ ने सवाल किया कि सरकार ने पांचों की गिरफ्तारी की मियाद बढ़ाने से पहले उन्हें न्यायिक समीक्षा बोर्ड के समक्ष पेश क्यों नहीं किया।