महाराष्ट्र के पुणे में 1 जनवरी को शुरु हुई जातीय हिंसा के बाद उठा विरोध प्रदर्शन अब शांत हो चुका है। लेकिन हिंसा और प्रदर्शन के खत्म होने के साथ ही अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो चुका है। अब पुणे की महिला ग्राम पंचायत की एक सदस्य का इस पर बयान आया है। पुणे में कोरेगांव भीमा की ग्राम पंचायत की महिला सदस्य ने मीडिया से बातचीत में कहा-
हम अपने घरों और कारों को नहीं जलाएंगे, साथ ही हम हमारी माताओं और बहनों पर अत्याचार नहीं करेंगे। यहां कोई जाति समस्या नहीं है। यहां मुसलमान, दलित, मराठा सभी एक साथ रहते हैं। यहां सभी समुदाय के लोग एक साथ प्यार और शांति से रहते हैं।
संभाजी ने लगाया इन पर आरोप
इधर हिंसा के बाद इस बात पर बहस छिड़ गई है कि इस आंदोलन के पीछे जिम्मेवार कौन था और ये किसका षड़यंत्र था। पुणे के शिव प्रतिष्ठान के प्रमुख और भीमा-कोरेगांव हिंसा के कथित रूप से मुख्य आरोपी संभाजी भिड़े ने भारीपा बहुजन महासंघ के प्रमुख डॉ. प्रकाश अंबेडकर पर अपने खिलाफ षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया। भिड़े ने केंद्र से इस मामले की विस्तृत जांच की अपील की है।
भिड़े ने कहा, “प्रकाश अंबेडकर ने मुझ पर षड़यंत्र का इल्जाम लगाया है जो पूरी तरह से गलत है। मैं सरकार के इस मामले की पूर्ण रुप से जांच करने की मांग करता हूं और दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ कड़ी सजा की मांग करता हूं।”
बता दें कि संभाजी भिड़े का यह बयान तब आया है जब प्रकाश अंबेडकर ने हिंदू एकता अघाड़ी और शिवराज प्रतिष्ठान को दलित समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने का जिम्मेवार बताया था। गौरतलब है कि पुणे से शुरु हुई इस हिंसा में एक युवक की मौत हो गई थी। इसके बाद दलित समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और भारी संख्या में सड़कों पर उतर आए। इस प्रदर्शन का असर केवल पुणे ही नहीं बल्कि मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र राज्य पर दिखा। यहां तक कि दिल्ली गुजरात सहित अन्य राज्यों में भी हिंसा की आंच नजर आई।
1 दिन के महाराष्ट्र बंद के दौरान पड़ा प्रभाव
विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुंबई में बुधवार को स्कूल बसों की सेवाएं बंद कर दी गई थी। हिंसा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए महाराष्ट्र विधानसभा के बाहर भी सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। बंद के कारण ठाणे में ऑटो-रिक्शा की कमी के कारण ऑफिस जाने वाले लोगों को काफी परेशानियां का सामना करना पड़ा। कर्नाटक से महाराष्ट्र को जाने वाली अंतरराज्यीय बस सेवा भी कुछ समय के लिए निलंबित कर दी गई। बंद के कारण ऑटोरिक्शा चालक भी काफी परेशान रहे।
इस कारण भीमा-कोरेगांव में भड़की हिंसा
बता दें कि एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में शौर्य दिवस मनाया जा रहा था। तभी दलितों और मराठा संगठन के लोगों के बीच हिंसा भड़क गई और एक व्यक्ति की मौत के बाद इस हिंसा की आग तेजी से पूरे महाराष्ट्र में फैल गई। गौरतलब है कि कोरेगांव-भीमा की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को ब्रिटिश इंडिया कंपनी और पेशवा समुदाय के साथ लड़ी गई थी। इसमें मराठाओं ने आखिरकार ब्रिटिश सेना से डरकर इस लड़ाई से अपने कदम पीछे कर लिए थे।
अंग्रेजों की सेना में पुणे के महार दलित सैनिक शामिल थे, जिसके कारण उनकी जीत हुई। और इसके बाद से ही दलित कार्यकर्ता इस युद्ध को अपने इतिहास में वीर प्रकरण के रूप में देखते हैं और हर साल 1 जनवरी को इसका जश्न मनाते हैं।