अभी-अभी: राम रहीम के लिए बहुत बुरी खबर, शाह मस्ताना समर्थकों ने लिया ये बड़ा फैसला...

अभी-अभी: राम रहीम के लिए बहुत बुरी खबर, शाह मस्ताना समर्थकों ने लिया ये बड़ा फैसला…

साध्वी रेप केस में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के लिए बड़ी बुरी खबर आई है। ऐसे में अब वह क्या करेगा और कौन साथ देगा उसका। दरअसल, राम रहीम की प्रॉपर्टी अटैच होने की कार्रवाई के दौरान ही अब डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक शाह मस्ताना के समर्थकों ने राम रहीम से किनारा कर लिया है।अभी-अभी: राम रहीम के लिए बहुत बुरी खबर, शाह मस्ताना समर्थकों ने लिया ये बड़ा फैसला...बड़ी खबर: कांग्रेस ने चुनाव आयोग से किया आग्रह, कहा- वीवीपीएटी के मशीन के साथ ही करवाएं

हाईकोर्ट में अर्जी दायर कर मांग की गई है कि गुरमीत सिंह राम रहीम से उनका कोई वास्ता नहीं है और वे शाह मस्ताना के अनुयायी हैं। ऐसे में शाह मस्ताना के डेरों को गुरमीत राम रहीम के मामले में अटैच न किया जाए।

शाह मस्ताना के दर्जनों अनुयायियों ने एडवोकेट एमएस जोशी के जरिये हाई कोर्ट की फुल बेंच में पहले से चल रहे मामले में यह अर्जी दायर की है। अर्जी में कहा गया कि शाह मस्ताना महान फकीर थे। उनके समय में 17 डेरे थे जिनका कुछ खास व्यावसायिक आधार नहीं है।

गुरमीत राम रहीम के मामले में हाईकोर्ट ने डेरे अटैच करने की जो बात कही है उसमे शाह मस्ताना जी के डेरे को शमिल नहीं किया जाए।

पुराने चर्चा घर पुराने साधुओं की आध्यात्मिक भावना से जुड़े हैं

अर्जी में मांग की गई की यह पुराने चर्चा घर पुराने साधुओं की आध्यात्मिक भावना से जुड़े हैं और उनका कोई व्यापारिक प्रयोग नही होता। गुरमीत राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के समय जो तोड़फोड़ और आगजनी और अन्य नुकसान हुए हैं,

उन्हें इन 17 डेरों से न वसूले जाएं बल्कि इस नुकसान की भरपाई गुरमीत राम रहीम की संपत्ति और उसके समय बनाए गए डेरों और नाम चर्चा घरों की संपत्ति को अटैच कर वसूली जाय। यह अर्जी शुक्रवार को हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में दायर कर दी गई है, जिस पर हाईकोर्ट मुख्य याचिका के साथ 27 सितंबर को सुनवाई करेगा।

फकीर चंद  मर्डर केस की सुनवाई स्थगित
डेरा सच्चा सौदा के फाउंडर शाह मस्ताना के मैनेजर फकीर चंद मर्डर केस की सुनवाई 1 नवंबर तक स्थगित हो गई। आरोप है कि फकीर चंद को बाबा राम रहीम  ने मरवा दिया था। रामकुमार बिश्नोई द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इस मामले की सही जांच नहीं हुई और 2010 में कैंसलेशन रिपोर्ट को निचली अदोलत ने स्वीकार कर लिया। यह सब राम रहीम के दवाब में हुआ। याचिका में इस मामले की दोबारा जांच की मांग की गई हैं।

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