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दरअसल, उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों के लिए यू-हेल्थ कार्ड योजना बंद होने जा रही है। वजह योजना के संचालन के लिए थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) की जरूरत है, जिसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में शासन पुरानी व्यवस्था (पहले इलाज और बाद में शासन से खर्च की प्रतिपूर्ति) की व्यवस्था को ही लागू करने के पक्ष में है। जल्द ही इसके लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी।
वर्ष 2010 से राज्य में सेवारत और सेवानिवृत्त कार्मिकों और उनके आश्रितों के लिए यू-हेल्थ कार्ड योजना (कैशलेस चिकित्सा सुविधा) लागू की गई थी। बाद में इसे सभी कर्मियों के लिए बृहद स्तर पर लागू करने का फै सला किया गया। इसमें कार्यरत और सेवानिवृत्त दोनों कर्मियों से एक निश्चित अंशदान भी लिया जाना था।
योजना को लेकर सभी सहमत थे, इसके लिए जरूरी शासनादेश भी जारी किए गए। यू-हेल्थ कार्ड के लिए निजी और सरकारी अस्पतालों की संख्या भी बढ़ाई गई। इसके बाद भी पर मामला फाइलों से आगे नहीं निकल सका। बताया जाता है कि इसके पीछे रोगी, अस्पताल के बीच कौन योजना को संचालित और समन्वय (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) करेगा, उसे लेकर पेंच फंसा हुआ है। स्वास्थ्य विभाग जहां पर अधिकारियों की फौज है, उसने भी एक तरह से योजना संचालन को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं।
वहीं, नियमों के हिसाब से इसमें निजी क्षेत्र का सहयोग लिया नहीं जा सकता है, इसके चलते पेंच फंस गया है। अब अंदरखाने योजना को बंद करने पर सहमति है। लेकिन, अंतिम तौर पर हाईकमान के सामने सभी पहलू रखने और रजामंदी लेने पर विचार किया जा रहा है।
शासन पूर्व की व्यवस्था को ही लागू करने के पक्ष में है। मामला कर्मचारियों से जुड़ा है, इसलिए कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। वहीं, योजना में देरी को लेकर कर्मचारियों में रोष बढ़ रहा है, जल्द ही विरोध खुलकर सामने आने की बात कही जा रही है।
यू-हेल्थ कार्ड योजना से करीब तीन लाख कार्यरत और रिटायर कर्मियों को लाभ होता। यू-हेल्थ कार्ड से इलाज कराने के बाद सरकारी कर्मियों के इलाज के खर्च की प्रतिपूर्ति लेने के लिए चक्कर नहीं लगाना होता, प्रतिपूर्ति के लिए जो मैनपावर और समय लगता है उससे भी बचत होती। इसके अलावा शासन के पास अंशदान के जरिये एक निश्चित राशि भी प्राप्त होती, लेकिन अफसरों के ढुलमुल रवैये के चलते मामला अटक गया है।