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रिश्तों की इस कड़वाहट का लाभ ऐसे मुस्लिम नेताओं ने उठाया जो विधानसभा चुनाव के नतीजों से हताश थे। ये नेता अपना खोया जनसमर्थन हासिल करने के लिए दोनों समुदायों को लड़ाकर दलित समाज को मुसलमानो की ओर मोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को पिछले दिनों भेजी गई पांच पेज की रिपोर्ट में यूपी सरकार ने भाजपा सांसद राघव लखनपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। इस मामले में दर्ज केस में सांसद लखनपाल का नाम भी है।
प्रशासन ने सांसद को वैकल्पिक मार्ग से शोभा यात्रा निकालने की अनुमति दी लेकिन तय शर्तों के विपरीत यात्रा दूसरे कस्बे में घुस गई। मुसलमानों ने इसका विरोध किया और स्थिति बिगड़ गई। इस बीच, जिला प्रशासन और सांसद सहित शोभायात्रा में शामिल लोगों के बीच तीखा विवाद हुआ। एक दलित कार्यकर्ता अशोक भारती पर सांसद को उकसाने का आरोप है।
रिपोर्ट के मुताबिक 13-14 सालों से यह शोभायात्रा निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन प्रशासन इसकी अनुमति नहीं देता। 2003 में बसपा राज में भी इसकी कोशिश की गई थी। इस घटना के बाद सांसद अपने समर्थकों के साथ एसएसपी आवास में घुस गए, जहां भीड़ ने आपत्तिजनक और वैधानिक कार्य किया।
इसके बाद, पांच मई को शब्बीरपुर गांव में राजपूत समाज की ओर से महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया था, जहा डीजे बजाने को लेकर स्थानीय ग्राम प्रधान समेत पूरे दलित समाज ने इसका विरोध किया। जिसके बाद हिंसक स्थिति उत्पन्न हो गई और हिंसा में सुमित राणा नाम के व्यक्ति की मौत हो गई।
दलित बस्ती में बने राजपूत भवन की दीवार गिरा दी गई और यहां आग लगा दी गई। यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ। जिला पुलिस असहाय नजर आई। सरकार ने माना है कि इस उग्र प्रदर्शन में पूर्व बसपा विधायक रवींद्र उर्फ मोलू की भूमिका अहम रही।
मायावती के पहुंचने से बिगड़ा माहौल
22 मई को राजपूत और दलित समाज के लोगों ने सर्वदलीय बैठक की। इसमें शांति बहाली में सहयोग देने की बात हुई। 23 मई को मायावती ने शब्बीरपुर गांव का दौरा किया।
दलितों ने राजपूत समाज पर बेहद आपत्तिजनक नारे लगाते हुए मायावती की सभा में हिस्सा लिया। महिलाओं को इंगित करते हुए भी नारे लगे। इसका असर यह हुआ कि मायावती की सभा खत्म होने के बाद वापस जा रहे लोगों पर अराजकतत्वों ने हमला बोल दिया। इसमें आशीष नाम के एक व्यक्ति की मौत हो गई।