नई दिल्ली। राज्यसभा में आज (बुधवार) वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की शुचिता को लेकर फिर हंगामा खड़ा हुआ। राज्यसभा में विपक्ष के माननीय सदन की सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए अध्यक्ष के आसन तक पहुंच गए। राज्यसभा में यह मामला बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने उठाया। बाद में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शरद यादव मायावती के समर्थन में खड़े दिखे।
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ईवीएम की शुचिता
हंगामा इतना अधिक बढ़ गया कि राज्यसभा अध्यक्ष को निचले सदन को स्थगित करना पड़ा। विपक्ष पूरी चुनाव प्रणाली को बदलने की मांग कर रहा है, वह ईवीएम के बजाय बैलेट से चुनाव चाहता है। जबकि सत्ता पक्ष ने इसे जनादेश का अपमान बताया है। सत्ता पक्ष आयोग के साथ खड़ा है, जबकि आयोग विपक्ष के आरोपों को गलत ठहरा रहा है।
अहम सवाल है कि जहां हर बात सियासी नजरिए से देखी जाती हो, उस स्थिति में कौन सच है, इसकी पहचान बेहद मुश्किल है। सरकार विरोधियों को आयोग के पास जाने की नसीहत दे रही है। जबकि विपक्ष पूरी प्रणाली में बदलाव चाहता है।
मायावती की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया गया है। लेकिन इस महौल में जब सभी पक्ष एक दूसरे से अपनी बात मनवाने पर अड़े हों फिर न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन सौ फीसदी कोई खरा नहीं हो सकता। इसके लिए तो बीच का रास्ता ही निकालना पड़ेगा। सारा फसाद उप्र की जीत का है। अभी तक वहां 14 सालों तक गैर हिंदू विचारधारा वाले दलों की सरकार बनती बिगड़ती रही है। लेकिन इस बार भाजपा की अप्रत्याशित जीत से ईवीएम ही अपवित्र हो चली है। ऐसी स्थिति में आयोग को वोटिंग का नया विकल्प और वोटिंग एप लांच करना चाहिए साथ ही ऑनलाइन वोटिंग प्रणाली आधार से लिंक कर अमल में लाई जानी चाहिए।
आयोग बार-बार यह साफ करता रहा है कि ईवीएम मशीन में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं की जा सकती। लेकिन यह सब हुआ कैसे? इस घटना के लिए जिम्मेदार कौन हैं। उप्र में भाजपा की अप्रत्याशित जीत पर विरोधियों की तरफ से उठाए गए सवाल क्या वाजिब हैं? आयोग जब कहता है कि ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ संभव नहीं है फिर यह गड़बड़ी कहां से आई। यह सवाल सिर्फ वोटिंग मशीन में तकनीकी खामी का नहीं बल्कि आयोग की साख और लोकतांत्रिक हितों का सवाल है।
इससे यह साबित होता है कि दाल में जरूर कुछ काला है आयोग को इसकी जबाबदेही तय करनी चाहिए। सिर्फ डीएम और एसपी को हटाना ही समस्या का समाधान नहीं है। अगर ईवीएम की तकनीक से खेल करना संभव है तो उस खेल की तकनीकी खामी बाहर आनी चाहिए, जिससे मशीनी प्रणाली में लोगों का भरोसा जिंदा रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का निष्पक्षता से निष्पादन किया जाए।
अगर सब ठीक था तो आईएस एवं आईपीएम अफसरों को क्यों हटाया गया। निर्दलीय उम्मीदवार को जाने वाला वोट कमल पर क्यों गया? अगर मशीन की सेटिंग दुरुस्त नहीं थी तो उसका परीक्षण ही क्यों किया गया। यहां वीवीपैट से चुनाव होने हैं। यह ईवीएम की वह व्यवस्था है, जिसमें मतदाता को वोटिंग करने के बाद पता चल जाएगा कि उसका वोट किस दल को गया। वोटिंग के बाद एक पर्ची निकलेगी और वह बताएगी आपका वोट आपके चुने हुए उम्मीदवार के पक्ष में गया है।
हलांकि वह पर्ची वोटर अपने साथ नहीं ले जा पाएगा। भिंड के परीक्षण में इसकी हवा निकल गई। आयोग के दावों पर भी सवाल उठने लगे हैं। जबकि आयोग बार-बार यह कहता रहा है कि ईवीएम में किसी प्रकार की कोई तकनीकी बदलाव नहीं किया जा सकता। आयोग ईवीएम को पूरी तरह सुरक्षित मानता है। यह चिप आधारित सिस्टम है। इसमें एक बार ही प्रोग्रामिंग की जा सकती है।
चिप में संग्रहित डाटा का लिंक कहीं से भी जुड़ा नहीं होता है उस स्थिति में इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ और हैकिंग नहीं की जा सकती। यह ऑनलाइन सिस्टम पर भी आधारित नहीं होता है। ईवीएम में वोटिंग क्रमांक सीरियल से सेट होता है। यह पार्टी के अधार के बजाय उम्मीदवारों का नाम वर्णमाला के अधार पर होता है, जिसमें पहले राष्ट्रीय, फिर क्षेत्रिय, दूसरे दल और निर्दलीय होते हैं।
हलांकि चुनाव आयोग ने 2009 में ऐसे लोगों को आमंत्रित किया था, जिन्होंने ईवीएम मशीन को हैक करने का दावा किया था। लेकिन बाद में यह साबित नहीं हो सका। अयोग की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में भी हैक का दावा करने वालों को भी चुनौती दी गई थी, लेकिन ऐसा दावा करने वाला कोई भी शख्स मशीन को हैक नहीं कर पाया। वहीं 2010 में अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ईवीएम को हैक करने का दावा किया था, जिसमें बताया गया था कि एक मशीन के जरिए मोबाइल से कनेक्ट कर इसमें बदलाव किया जा सकता है।
निर्वाचन आयोग को दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए। आधुनिक तकनीक और विकास की वजह से वोटिंग के दूसरे तरीके भी अब मौजूद हैं। उसी में एक ऑनलाइन वोटिंग का तरीका हो सकता है। वैसे इसे हैक की आशंका से खारिज किया जा सकता है। लेकिन वोटरों को सीधे आधारकार्ड से जोड़ कर मतदान की आधुनिक सुविधा प्रणाली विकसित की जा सकती है।
आज का दौर आधुनिक है और हर वोटर के हाथ में एंड्रायड मोबाइल की सुविधा उपलब्ध है। आयोग वोटिंग एप लांच कर नई वोटिंग प्रणाली का आगाज कर सकता है। आधार जैसी सुविधाओं का हम दूसरी सरकारी योजनाओं में उपयोग कर सकते हैं, फिर वोटिंग के लिए आधार प्रणाली का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सकता है। देश में ऐसी वोटिंग प्रणाली विकसित की जाए, जिससे कोई भी वोटर कहीं भी रह कर अपने मताधिकार का उपयोग कर सके।
आज भी लाखों लोग चाह कर भी अपने वोट का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। देश के अधिकांश लोगों के पास आधार कार्ड हो गई है। वोटिंग प्रणाली को सीधे अंगूठे से अटैच किया जाए। जिस तरह से दूसरी सरकारी योजनाओं में आधार का उपयोग किया जा रहा है उसी तरह वोटिंग में भी इसका उपयाग होना चाहिए। इस व्यवस्था के तहत कोई व्यक्ति सीधे अपने अंगूठे का प्रयोग कर मतदान कर सकता है।
मोबाइल एप के जरिए भी लोग अपने मताधिकार का प्रयोग बगैर वोटिंग बूथ तक पहुंचे कर सकते हैं। इससे चुनाव और सुरक्षा पर होने वाला करोड़ों रुपये का खर्च बचेगा। ईवीएम मशीनों के विवाद और इस्तेमाल के अलावा रखरखाव से निजात मिलेगी। वोटिंग की तारीख किसी विशेष इलाके के आधार पर निर्धारित करने के बजाय कम से कम 30 दिन तक निर्धारित की जाए।
हालांकि यह तकनीक बेहद उलझाव भरी होगी, क्योंकि वोटिंग विधान और लोकसभा के आधार पर की जाएगी। उसी के आधार पर वोटिंग एप और दूसरी सुविधाएं लांच करनी पड़ेगी। तमाम तरह की समस्याएं भी आएंगी। इसमें काफी लंबा वक्त भी लग सकता है। हैकरों की तरफ से इसे हैक किए जाने की कोशश भी की जा सकती है। लेकिन अगर आयोग चाहेगा तो यह बहुत कठिन नहीं होगा। तकनीकी सुविधाओं का इस्तेमाल कर इसे आसान बनाया जा सकता है।
भारत निर्वाचन आयोग बेहद विश्वसनीय संस्था है। उसे अपना यह भरोसा कायम रखना होगा। हालांकि विपक्ष के आरोपों में बहुत अधिक गंभीरता नहीं दिखती है। लेकिन अगर सवाल उठाया गया है तो उसका समाधान भी होना चाहिए। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है। सत्ता और प्रतिपक्ष का अपना-अपना धर्म है। राजनीति से परे उठ कर सभी संस्थाओं को अपने दायित्वों का अनुपालन करना चाहिए, जिससे लोकतंत्र की तंदुरुस्ती कायम रहे।
वैसे आयोग की विश्वसनीयता और उसके दावे पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। यह देश की सबसे बड़ी निष्पक्ष और लोकतांत्रिक संस्था है। स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव संपन्न कराना आयोग का नैतिक दायित्व भी है। यहां किसी की जय पराजय का सवाल नहीं बल्कि बात स्वस्थ्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता का है। उठ रहे सवालों का आयोग को जवाब देना चाहिए, जिससे देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था की विश्वसनीयता बनी रहे और लोगों को उनके सवालों का भी जवाब मिले साथ ही जन और मन का विश्वास भी बना रहे।