अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. अयोध्या मामले में पहला अहम फैसला देते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे पक्षों की सभी हस्तक्षेप याचिकाएं खारिज कर दीं. सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को कहा कि इस मामले में कोई आईए स्वीकार न करे.
सुप्रीम कोर्ट ने अब अयोध्या विवाद की अगली सुनवाई 23 मार्च को 2 बजे करने का निर्णय लिया है. कोर्ट ने हस्तक्षेप याचिकाओं के बारे में अलग-अलग पूछा. सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी याचिका की मौलिकता के बारे में कहा तो विरोधी वकीलों ने इसका विरोध किया.
मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन ने कहा कि स्वामी की याचिका यानी को नहीं सुना जाय. इस पर नाराज़ स्वामी बोले कि ये लोग पहले भी कुर्ता-पजामा के खिलाफ बोल चुके हैं.
मध्यस्थता पर क्या कहा
चीफ जस्टिस ने आरिफ मोहम्मद खान के इस मामले में मध्यस्थता कर निपटारे के प्रस्ताव पर कहा कि कोई भी विद्वान, वकील या अन्य व्यक्ति दोनों पक्षों से बात कर सकता है.
दोनों वकील हमें ज्ञापन दें. हम खुद निपटारे के लिए किसी की नियुक्त या नाम नहीं सुझा सकते हैं. कानून की अपनी सीमाएं हैं.
सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने भी कहा कि तीसरे पक्षों यानी हस्तक्षेप याचिकाओं को इस समय सुना जाना उचित नहीं.
राजीव धवन ने कहा कि हस्तक्षेप याचिका दायर कर कोर्ट में पहली कतार में बैठने का ये मतलब नहीं कि उनको पहले सुना जाय. इस पर स्वामी ने पलट कर जवाब दिया कि पहले ये लोग मेरे कुर्ते-पाजामे पर सवाल उठा चुके हैं और अब अगली कतार में बैठने पर. इससे पहले की सुनवाई में अदालत ने 14 मार्च से लगातार सुनवाई करने की बात कही थी. गौरतलब है कि 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने हुई मीटिंग में सभी पक्षों ने कहा कि काग़जी कार्रवाई और अनुवाद का काम लगभग पूरा हो गया है.
हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सबसे पहले सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लिहाज़ा पहले बहस करने का मौका उन्हें मिल सकता है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने काग़जी कार्रवाई और अनुवाद का काम पूरा करने के आदेश दिए थे.
आपको बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की बेंच सुनवाई की दिशा तय करेगी. गौरतलब है कि यह विवाद लगभग 68 वर्षों से कोर्ट में है.
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