भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के हिमवीर अब सीमा पर चीन को उसी की भाषा मंदारिन में माकूल जवाब देंगे। मसूरी स्थित आइटीबीपी अकादमी में अफसरों और जवानों को अब मंदारिन में दक्ष किया जा रहा है। इससे न केवल जवान चीनी सेना की चाल को भांप सकेंगे, बल्कि जरूरत पड़ने पर उनसे आसानी से संवाद भी कर पाएंगे। इतना ही नहीं हिमवीरों को दी जाने वाली मार्शल आर्ट ट्रेनिंग को भी अब ज्यादा महत्व दिया जा रहा है।
आइटीबीपी की तैनाती लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के फ्रंटलाइन डिफेंस के तौर पर होती है। यानि इनका चीनी सेना से सीधा सामना होता है। हालांकि, चीनी सैनिकों के साथ जवानों को अक्सर भाषाई दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वह अपनी बात समझाने के लिए पहले से लिखे पोस्टरों का इस्तेमाल करते हैं। कई बार चीनी सैनिक अपनी भाषा में कुछ बोलते रहते हैं, लेकिन हमारे जवान समझ नहीं पाते। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि कई छोटे-मोटे गतिरोध आपसी बातचीत से मौके पर ही खत्म किए जा सकते हैं। ऐसे में अब आइटीबीपी के जवानों को मंदारिन सिखाई जा रही है। इससे वे चीनी सैनिकों की बातों को सही से समझने के साथ ही वाजिब जवाब भी दे पाएंगे। गलवन घाटी की घटना के बाद मंदारिन भाषा का को सीखना जरूरी समझा जा रहा है।
आइटीबीपी की मसूरी स्थित अकादमी में इसकी शुरुआत की जा चुकी है। हालांकि, पहले भी अफसरों और जवानों को मंदारिन सिखाई जाती थी, लेकिन इनकी संख्या सीमित होती थी। लद्दाख की गलवन घाटी में उपजे हालात के बाद अब कोर्स को नए प्रारूप में योजनाबद्ध ढंग से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि अब सभी जवानों और अफसरों को यह कोर्स कराया जाएगा। इसके तहत ऑडियो-वीडियो ट्रेनिंग पर खास जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा रिफ्रेशर कोर्स की भी संख्या बढ़ाने पर भी विचार किया जा रहा है। साथ ही चीनी भाषा की एडवांस ट्रेनिंग पर भी काम चल रहा है। यह जिम्मेदारी आइटीबीपी के चाइनीज लैंग्वेज डिपार्टमेंट की है। यह फोर्स के ही लोग हैं जिन्होंने विभिन्न संस्थानों से चीनी भाषा का कोर्स किया हुआ है।
मसूरी में वर्ष 1978 में हुई थी अकादमी की स्थापना
अक्टूबर वर्ष 1962 में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) का गठन किया गया था। इसके 16 साल बाद 1978 में मसूरी में आइटीबीपी अकादमी की स्थापना की गई। अकादमी में अधिकारियों और जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

पीएस पापटा (निदेशक आइटीबीपी अकादमी) का कहना है कि अभी तक हिमवीरों को मंदारिन भाषा का कोर्स सीमित संख्या में कराया जाता है। अब सभी को कोर्स कराया जा रहा है। ताकि सीमा पार तैनात जवान चीनी सैनिकों से बेहतर ढंग से संवाद कर सकें। कई छोटे-छोटे गतिरोध आपसी बातचीत से मौके पर ही खत्म किए जा सकते हैं।
जेएस तड़ियाल (पूर्व कमान्डेंट आइटीबीपी) का कहना है कि इस कोर्स का उद्देश्य सीमा पर बेहतर संवाद स्थापित करना है। पहले भी कुछ जवानों की इसकी ट्रेनिंग दी जाती थी, लेकिन संख्या काफी कम थी। यह अच्छी बात है कि इसका विस्तार किया जा रहा है। इससे संवादहीनता की स्थिति खत्म होगी और सीमा पर प्रबंधन बेहतर होगा।
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