आइये जानिए नवरात्रि की पूजा में जौ बोने का क्या है महत्व

इस वर्ष नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू होने जा रही है। इस दौरान माता रानी के 9 रूपों को पूजा जाता है। इन सभी की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। नवरात्रि में जौ बोने का भी विधान है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि यह क्यों किया जाता है? जागरण अध्यात्म के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि नवरात्रि की पूजा में जौ बोने का क्या महत्व होता है। आइए जानते हैं।

ब्रह्म का स्वरूप है जौ:

धर्मग्रंथों के अनुसार, जौ को ब्रह्म का स्वरूप माना गया है। प्राचीन काल में जब हवन किया जाता था तब आहुति देने की परंपरा थी। इसी तरह से हमें अन्न यानी जौ का भी सम्मान करना चाहिए। इसी से इसके महत्व का पता चलता है। नवरात्र के दौरान जौ बोया जाता है। जौ जातक के भविष्य में आने वाले संकेतों को भी दर्शाती है। मान्यता है कि नवरात्र में जब जौ बोई जाती है और वो जितनी बढ़ती है उतनी ही माता रानी की कृपा बरसती है। यह दर्शाता है कि व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।

कहा जाता है कि अगर जौ के अंकुर 2 से 3 दिन में आ जाते हैं तो यह बेहद शुभ होता है। वहीं, अगर जौ नवरात्रि खत्म होने तक न उगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है। हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि अगर आपने जौ ठीक नहीं बोया है तो भी जौ नहीं होता है। हालांकि कई बार ठीक तरह से जौ न बोने से भी ऐसा हो सकता है। ऐसे में ध्यान रखें कि जौ को अच्छे से बोए।

इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जौ का रंग भी काफी निर्भर करता है शुभ और अशुभ पर। अगर जौ के ऊपर का आधा हिस्‍सा हरा हो लेकिन नीचे का हिस्सा पील हो तो इससे वर्ष का पता चलता है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति का आधा साल अच्छा होता है और बाकी का परेशानियों से भरा हुआ। वहीं, अगर जौ का रंग पूरी तरह हरा हो या फिर सफेद हो तो इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति का पूरा वर्ष काफी अच्‍छा जाएगा। साथ ही जीवन में अपार खुशियां और समृद्धि के वास के भी संकेत इससे मिलते हैं।

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