इन दिनों राहुल गांधी और गुजरात में उनके चुनावी कैंपेन की जमकर चर्चा है. सोशल मीडिया से लेकर खबरों की दुनिया तक राहुल के बदले तेवर की ही चर्चा हो रही है. राहुल गांधी गुजरात चुनावों के मद्देनजर अपने तीन चरणों का चुनावी कैंपेन पूरा कर चुके हैं. इस दौरान उन्होंने गुजरात में तकरीबन आधा दर्जन रैलियों को संबोधित किया.हज यात्रियों के लिए आई बड़ी खबर, हज आवेदन फॉर्म आधार से लिंक किए जाएं
गुजरात में राहुल गांधी ने अपने तीसरे चरण के चुनाव प्रचार की शुरुआत भरूच से की थी. दरअसल भरूच से गांधी परिवार का पुराना रिश्ता रहा है. अव्वल तो वहां राहुल के दादा फिरोज गांधी का बचपन बीता था और उनकी दादी इंदिरा गांधी से शादी के बाद कई बार भरूच भी गए. इसके अलावा भरूच से वह शख्स भी आता है जो गुजरात में बीजेपी का गढ़ हिलाने का प्रण ले चुके राहुल गांधी की मदद पर्दे के पीछे से ही कर रहा है. वह शख्स कोई और नहीं बल्कि अहमद पटेल ही हैं जो 2001 से लगातार राहुल की मां और मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राजनीतिक सलाह देते आए हैं. और यह बात भी स्पष्ट है कि कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल से ज्यादा गुजरात की राजनीति की समझ फिलहाल कांग्रेस में किसी के पास नहीं है.
बीजेपी के निशाने पर हैं अहमद पटेल
अहमद पटेल गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी की योजना के प्रमुख अंग हैं. कांग्रेसियों के बीच इस बात की भी चर्चा है कि अगर कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीतती है तो अहमद पटेल मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बन सकते हैं.
शायद यही कारण है कि बीजेपी ने दो आईएस संदिग्धों की गिरफ्तारी के बाद अहमद पटेल को सीधे निशाना बनाया है. इससे पहले, गुजरात में राज्यसभा के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने अपने सभी शक्तियों का पूरा इस्तेमाल किया था. और कांग्रेस ने किसी तरह लड़-झगड़कर अहमद पटेल को राज्यसभा ले जाने में सफलता हासिल की थी.
अब, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने पटेल के राज्यसभा से इस्तीफे की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि आईएस के एक संदिग्ध अहमद पटेल के ट्रस्ट द्वारा संचालित एक अस्पताल में काम कर रहे थे.
गांधी परिवार से पुराना है पटेल का रिश्ता
अहमद पटेल की राजनीतिक पारी आपातकालीन दिनों के दौरान शुरू हुई जब लोग इंदिरा गांधी के कांग्रेस को छोड़ रहे थे. उस समय उन्होंने दक्षिण गुजरात में पार्टी का ध्वज फहराया. 1977 में वे भरूच से लोकसभा के लिए चुने गए थे, जब इंदिरा गांधी ने भी रायबरेली में अपनी सीट गंवा दी थी. उस वक्त पटेल केवल 28 साल के थे.
अहमद पटेल गांधी परिवार में राजीव गांधी के सबसे करीबी रहे. समयबद्ध काम के चलते राजीव गांधी उन्हें काफी पसंद करते थे. राजीव गांधी ने कांग्रेस में बड़े परिवर्तन करने शुरू किए और युवाओं को मौका देना शुरू किया तो अहमद पटेल को भी कांग्रेस का महासचिव बनाया. इसके बाद वे राजीव गांधी ही नहीं गांधी परिवार के भी करीब आते गए. गांधी परिवार से उनकी निकटता 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद और ज्यादा हो गई.
अच्छे रणनीतिकार
जब पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, अहमद पटेल कांग्रेस कार्यकारणी समिति में केवल एक कार्यवाहक थे. जब 1990 के अंत में सोनिया गांधी ने कांग्रेस का प्रभार संभाला, तो अहमद पटेल फिर से पार्टी के अहम चेहरों में वापस आ गए. 2001 में अहमद पटेल सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार बने.
अहमद पटेल कांग्रेस के लिए एक मुस्लिम चेहरा तो हैं जो एहसान जाफरी (जो गुलबर्ग सोसायटी में 2002 में दंगाइयों के हाथ मारे गए थे) के बाद संसद में गुजरात का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन उन्हें मुस्लिम नेता नहीं माना जाता क्योंकि वे 1993 से लगातार राज्यसभा में हैं. और अपनी इतनी लंबी राजनीतिक पारी में वे केवल तीन बार भरूच से सांसद रहे (1977 से 1989 के बीच). पटेल भले ही अब भरूच से चुनाव ना लड़ते हों लेकिन उन्होंने भरूच से अपना नाता कभी नहीं तोड़ा.
हो सकते हैं सीएम कैंडिडेट
कई लोग मानते हैं कि अगर कांग्रेस गुजरात में अमित शाह और नरेंद्र मोदी के रूप में बीजेपी के चुनाव जीतने वाली मशीन को रोकना चाहती है, तो अहमद पटेल को राज्य के मुख्यमंत्री बनने की सबसे अच्छी संभावना है. अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस की तैयारियों को तो गति देगा ही साथ ही साथ बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर देगा.