144 घंटे का हनीप्रीत का रिमांड, जानिए कौन से राज उगले और क्या कुछ छिपा गई?
10 अक्टूबर 1964 को सिर्फ 39 बरस की उम्र में खुदकुशी कर लेने वाले गुरु दत्त की वैसी मौत अब सिर्फ एक दर्दनाक ब्यौरा बनकर रह गई है, लेकिन उनकी ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहब, बीबी और गुलाम’जैसी फिल्में आज भी हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर हैं।
गुरु दत्त को लोग बंगाली जरूर समझते थे पर वो बंगाली नहीं थे। गुरु दत्त यूं तो बंगलुरु में जन्मे थे, हिन्दी या उर्दू उनकी मातृभाषा नहीं थी, लेकिन उनकी शिक्षा देश की तत्कालीन सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता में हुई। गुरु दत्त का दिल स्कूल की किताबों में नहीं लगता था। बचपन में एक तस्वीर को देख गुरु दत्त इतने प्रभावित हुए कि नृत्य सीखने की इच्छा उन्हें नृत्य विश्वगुरु उदय शंकर के पास ले गई।
इसके बाद गुरु दत्त ने एक फिल्म बनाई प्यासा, जो आज तक हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी हिट मानी जाती है। इसके बाद आई ‘कागज के फूल’ हालांकि इस फिल्म को उस वक्त दर्शकों ने नकार दिया। ‘कागज के फूल’ में गुरु दत्त व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों स्तर पर मायूस हुए और उन्होंने यह लिखा भी है कि जनता की रुचि पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन आज हिंदी सिनेमा में इसी फिल्म की मिसाल दी जाती है।