आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 1 अक्टूबर को है। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस एकादशी का विशेष महत्व होता है। इस एकादशी का व्रत करने से यमलोक के दुख को सहन नहीं करना पड़ता है। जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत रखकर सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता और जूते का दान करता है उसके पूर्वजन्म के भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
मान्यता के अनुसार विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम के एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा ही पापी स्वभाव का था। वह हर समय बुरे काम में लिप्त रहता था। जब उसका अंतिम समय आया तो वह मृत्य के भय से डर कर महर्षि अंगिरा के पास पहुंचा। तब महर्षि अंगिरा ने उसके समस्त पापों के नष्ट करने के लिए पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। बहेलिया द्वारा यह व्रत करने से उसे सारे पापों से छुटकारा मिल गया।
पापांकुशा एकादशी व्रत में दान और दक्षिणा का विशेष महत्व होता है इसलिए इस एकादशी में दान अवश्य करना चाहिए।इस एकादशी के दिन गरूड़ पर विराजमान भगवान विष्णु के दिव्य रूप की पूजा करनी चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके हरि चिंतन, भजन करने वाले मनुष्य की अपने सहित कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है।
पापाकुंशा एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल देने वाली एकादशी होती है। जो भक्त इस एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु के मंत्रो का जाप करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।