1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम भले ही मेरठ से शुरु हुआ लेकिन आज के सहारनपुर, देहरादून व हरिद्वार जिलों में भी 11 मई और इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के बाद विद्रोह की लौ भड़की थी।
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किसानों ने खासकर इस सैन्य विद्रोह का समर्थन किया। मस्जिदों में अंग्रेजी हुकूमत के अंत और सैन्य विद्रोह की सफलता की दुआएं मांगी गई। कृषि से जुड़ी विभिन्न जातियां भू राजस्व नीतियों से पीड़ित थी इसलिए वे भी फिंरगी राज से मुक्ति चाहती थी।
इतिहासकार आर बेरी का मानना है कि 1857 का सैन्य विद्रोह व जनक्रांति का आज के उत्तराखंड के मैदानी इलाकों पर बड़ा असर पड़ा था। इसके पीछे कई कारण काम कर थे।
वे कहते हैं कि लोगो में अंग्रेजी राज के प्रति जबरदस्त आक्रोश व नफरत थी। मौलानाओं ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ जेहाद का फतवा जारी किया। सहसपुर, विकासनगर, राजपुर में 11 मई 1857 को बड़ी तादाद में युवाओं व किसानों ने विद्रोही सैनिकों और बहादुरशाह जफर के समर्थन में जुलूस निकाला।
मोहंड में दाहिने हाथ पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अस्तबल था। इनको गुर्जरों ने तहस नहस कर दिया। यहां पर कई अंग्रेजी सैनिकों पर हमला किया गया। देहरादून के राजपुर में पख्तूनों (पठानों) की बस्ती हुआ करती थी। पख्तून एकत्र हुए और कंपनी राज के खिलाफ संघर्ष का झंडा बुलंद किया।