एकादशी की भांति प्रत्येक महीने में दो बार चतुर्थी का उपवास रखा जाता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में। दोनों ही उपवास गणपति को समर्पित होते हैं। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। वहीं वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी अथवा विकट संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। मुश्किल वक़्त, संकट तथा दुखों से मुक्ति पाने के लिए संकष्टी चतुर्थी का ये उपवास रखा जाता है। इस दिन शिव जी तथा गौरी के पुत्र गणेश की विधि विधान से पूजा कर मोदक या लड्रडुओं को चढ़ाया जाता है तथा रात में चंद्रमा के दर्शन व अर्घ्य के बाद उपवास खोला जाता है। इस बार विकट संकष्टी चतुर्थी 30 अप्रैल को पड़ रही है।
शुभ मुहूर्त:-
संकष्टी चतुर्थी- 30 अप्रैल 2021, शुक्रवार
चतुर्थी तिथि शुरू- 29 अप्रैल 2021 रात 10 बजकर 9 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त- 30 अप्रैल 2021 को 7 बजकर 9 मिनट तक
चंद्रोदय का समय- रात 10 बजकर 48 मिनट
जानिए क्या है महत्व?
प्रभु श्री गणेश को शुभता का प्रतीक माना जाता है। जहां गणेश जी का श्रद्धा तथा भक्ति के साथ पूजन होता है, वहां कभी कोई अमंगल नहीं होता। गणेश जी को समर्पित संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से घर की सभी नकारात्मक शक्तिओं का प्रभाव समाप्त हो जाता है। विपत्तियां दूर होती हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन चंद्र दर्शन की विशेष अहमियत है। चंद्र दर्शन के पश्चात् ही ये व्रत पूर्ण माना जाता है।
पूजा विधि:-
संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः जल्दी उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं। स्नानादि के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र पहनें तथा पूजा की वेदी तैयार करें। अब एक चौकी अथवा पाटे पर प्रभु श्री गणेश की तस्वीर स्थापित कर व्रत का संकल्प लें। उसके पश्चात गणेश भगवान को धूप, दीप, 21 दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, पुष्प तथा प्रसाद अर्पित करें। फिर ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें। शाम के वक़्त चंद्रमा के दर्शन कर शहद, चंदन तथा रोली मिश्रित दूध से अर्ध्य दें। तत्पश्चात व्रत पारण करें।