प्रदेश में इन दिनों हो रही भारी बारिश के चलते जगह-जगह नए भूस्खलन जोन सामने आने से आपदा प्रबंधन महकमे की नींद उड़ी हुई है। फिर चाहे वह बागेश्वर का कपकोट क्षेत्र हो अथवा पौड़ी जिले में कोटद्वार के नजदीक लालपुल के नजदीक का क्षेत्र या फिर दूसरे इलाके। ये न सिर्फ सांसें अटका रहे हैं, बल्कि पहाड़ की लाइफ लाइन कही जाने वाली सड़कों को भी बाधित किए हुए हैं। सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी के अनुसार इस समस्या से निबटने के मद्देनजर सभी जिलाधिकारियों को नए भूस्खलन जोन का भू-वैज्ञानिक सर्वे कराने को कहा गया है, ताकि इसके आधार पर ट्रीटमेंट किया जा सके। आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में हर साल ही बरसात जनजीवन पर भारी पड़ती है। खासकर उन पर्वतीय इलाकों में, जो भूस्खलन की जद में हैं। वहां वर्षाकाल काला पानी की सजा से कम नहीं होता। थोड़ी सी बारिश हुई नहीं कि भूस्खलन की आशंका से सांसें अटकने लगती हैं। यही नहीं, जगह-जगह सड़कें बाधित होने से आवाजाही में दिक्कत के साथ ही रोजमर्रा की जरूरतों की किल्लत से जूझना पड़ता है सो अलग।
अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि प्रदेशभर में विभिन्न मार्गों पर भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील 43 भूस्खलन जोन लोक निर्माण विभाग ने चिह्नित किए हैं। इसके अलावा चार सौ से अधिक गांव भूस्खलन की दृष्टि से खासे संवेदनशील माने गए हैं। इस मर्तबा हो रही बारिश से न सिर्फ नए भूस्खलन जोन सामने आ रहे है, बल्कि गांवों के लिए भी खतरा बढ़ा है। जाहिर है कि इससे सरकार की पेशानी पर भी बल पड़े हैं।
सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी ने भी माना कि इस बरसात में जगह-जगह नए भूस्खलन जोन सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में सभी जिलाधिकारियों से जानकारी मांगी गई है। इसमें सड़कों के साथ ही भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील गांवों के बारे में विस्तृत ब्योरा मांगा गया है। उन्होंने बताया कि जितने भी नए भूस्खलन जोन सामने आ रहे हैं, उनके भू-वैज्ञानिक सर्वे के बाद इनके ट्रीटमेंट के लिए कदम उठाए जाएंगे। इसमें वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान समेत अन्य संस्थाओं की मदद भी ली जाएगी। नैनीताल की माल रोड पर मांगी रिपोर्ट
सचिव आपदा प्रबंधन के मुताबिक सरोवरनगरी नैनीताल में माल रोड पर भू-धंसाव के मद्देनजर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र (डीएमएमसी) की टीम निरीक्षण के लिए भेजी गई है। वह स्थलीय निरीक्षण के साथ ही भू-धंसाव के कारणों की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट देगी। इसके अलावा अन्य वैज्ञानिक संस्थानों से भी सहयोग मांगा गया है, ताकि माल रोड पर बेहतर ट्रीटमेंट कर भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने पाए।