मानव अपने जीवन में दो प्रकार की वाणी का अनुसरण करता है, और उसका यह अनुसरण कोई आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चले आ रहा है। यहां पर दो प्रकार कि वाणी से तात्पर्य सत्य और असत्य से है। यह सत्य और असत्य मानव जीवन में एक अहम स्थान रखता है। समाज में मानव इन्ही दो प्रकार की वाणी पर हमेशा अमल करता है और अपना जीवन यापन भी करता है।
सरलता ही सत्य है। सत्य ईश्वर है। सत्य बोलना कठिन नहीं है। जो वास्तविकता है, उसे ही कहना है। सत्य में जोडऩा, घटाना और गुणा भाग नहीं करना पड़ता। झूठ बोलना इसके ठीक विपरीत है। जो नहीं है, वही कहना है। जल को हवा सिद्ध करने के लिए प्रपंच की सृष्टि करनी पड़ती है। वास्तविकता से दूर जाना पड़ता है। सत्य का यथार्थ से संबंध है। संकोच करने पर मायावी-दिखावे के कारण अवसर निकल जाता है।
संबंध की दीर्घता में सत्य और सरलता सेतु सदृश है। सत्य को कभी स्मरण नहीं रखना पड़ता। स्वयं स्मृति में रहता है। झूठ को सदा स्मृति पटल पर रखना होता है। झूठ को जितनी बार दोहराते हैं, उतनी बार उसका अर्थ बदलता जाता है। झूठ जटिलताएं उत्पन्न करता है, जो मानसिक तनाव का कारण बनकर सरलता नष्ट करता है। सरलता के बगैर सत्य की निकटता नहीं मिलती। जटिलता छोडऩे पर आनंद धारा फूट पड़ती है।