बौद्घ धर्म के अनुयायियों के लिए महा बौद्घि मंदिर का काफी महत्व है। गया स्थित इस मंदिर में हर साल यहां लाखों बौद्घ अनुयायी आते है। मंदिर में मौजूद बोधिवृक्ष से भी अनुयायी खास जुड़े है, क्योंकि ये वहीं वृक्ष है जिसके नीचे गौतम बुद्घ को ज्ञान प्राप्त हुआ था। मंदिर में मौजूद यह वृक्ष अपनी पीढ़ी का चौथा वृक्ष है, जो 2650 साल पुराना है।
इसकी टहनियां इतनी विशाल है कि लोहे के 12 पिलरों का सहारा दिया गया है। यह देश का पहला ऐसा वृक्ष है, जिसके दर्शन के लिए हर साल करीब पांच लाख श्रद्धालु आते है, जिसमें से करीब दो लाख विदेशी होते है। जानें कैसी होती है इस वृक्ष की देशभाल
इस वृक्ष की सुरक्षा के लिए बिहार मिलिट्री पुलिस की चार बटालियन करीब 360 जवान 24 घंटे लगे रहते हैं और इस पेड़ को छूने पर भी प्रतिबंध है। कीटों से बचाने के लिए इस पर एक विशेष तरह के पदार्थ का छिड़काव किया जाता है।
वहीं पोषक तत्व देने के लिए मिनरल्स का लेप चढ़ाया जाता है। इस पेड़ का चेकअप करने देहरादून से भारतीय वन अनुसंधान के वैज्ञानिक आते है।वृक्ष सहित मंदिर की देखभाल और सुरक्षा के लिए चार डोर मेटल डिटेक्टर, 10 हैंड मेटल डिटेक्टर और करीब 50 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं
मंदिर में मौजूद बोधिवृक्ष की यह चौथी पीढ़ी 141 साल पुरानी हैं। 1881 में महाबोधि मंदिर के जीर्णोद्वार के समय एलेक्जेंडर कनिंघम ने श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा को मंगवाकर इसे उसी जगह पर लगवाया।
मंदिर में मौजूद बोधिवृक्ष की पहली पीढ़ी के वृक्ष जिसके नीचे गौतम बुद्घ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उस वृक्ष की टहनियों को सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को देकर श्रीलंका में बौद्घ धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भेज दिया। कुछ समय बाद सम्राट की रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी छुपे उस पेड़ को कटवा दिया, लेकिन उसके कुछ समय बाद ही उसी जगह दूसरी पीढ़ी का वृक्ष उग गया। जो करीब 800 साल तक रहा।
दूसरी पीढ़ी के वृक्ष को एक नरेश ने नष्ट करवाने की कोशिश की, लेकिन उसकी जड़े पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई और कुछ ही सालों बाद उन्हीं जडों से तीसरी पीढ़ी का वृक्ष निकला, जो 1250 वर्षो तक रहा। 1876 में एक प्राकृतिक आपदा के कारण यह वृक्ष्स भी नष्ट हो गया था। तब कनिंघम ने श्रीलंका के अनुराधापुरम में रखी टहनियों को मंगवाकर वृक्ष लगाया।