इजराइल: छोटा सा गाजा, भारी भरकम बमबारी फिर भी जानिए क्या है?

इस बार आसान नहीं है इस बार फिलिस्तीन को सस्ते में समेट पाना। वहीं रूस, चीन, ईरान, तुर्की से बही हवा से परेशान हैं जो बाइडन। युद्ध लंबा खिंचा तो कीमत चुकाएंगे विकासशील देश त्योहारी महीना आ गया है और भारतीय शेयर बाजार खुशखबरी नहीं दे पा रहा है। दूसरी तरफ फलस्तीन के छोटे से गाजा में इस्राइली सुरक्षा बल आए दिन भीषण बमबारी कर रहे हैं। भारत के पूर्व राजनयिकों और कूटनीतिक जानकारों की मानें तो इस्राइल और फलस्तीन के संगठन हमास के बीच में युद्ध को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जल्दी से जल्दी समेटना चाहते हैं। लेकिन रूस, चीन, तुर्की और ईरान से बहकर आ रही हवा ने उन्हें परेशान कर दिया है। माना जा रहा है कि यह युद्ध लंबा खिंच सकता है और दुनिया के विकासशील देशों को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

इस्राइल की फलस्तीन के संगठन हमास पर भीषण सैन्य कार्रवाई, अमेरिका के खुले समर्थन की घोषणा ने इसे अब काफी पेचीदा बना दिया है। विदेश मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि कहीं न कहीं अब बात फंसती दिखाई दे रही है। इस लड़ाई के बाद जो रायता फैला है, उसे समेट पाना बहुत आसान नहीं है। आज भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने लड़ाई जारी रखने के पक्ष में अपने वीटो का इस्तेमाल किया। अमेरिका ने इस दौरान हमास से बंधकों को रिहा करने के लिए कहा। यह प्रस्ताव गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए कुछ दिन लड़ाई रोकने से संबंधित था। दूसरी तरफ समझने वाली बात है कि हमास के लोग कुछ दिन के अंतराल पर कुछ-कुछ बंधकों को छोड़ रहे हैं। कूटनीति के जानकारों को इस तरह के सभी प्रयासों में मनोवैज्ञानिक वार गेम की झलक साफ दिखाई दे रही है।

भारत की ‘एंट्री’ के क्या मायने?
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने जी-20 में कॉरिडोर पर बनी सहमति का जिक्र किया। वह इसके पीछे का कारण, भारत के मध्य पूर्व एशिया और यूरोप कॉरीडोर की घोषणा को बता रहे हैं। जबकि भारतीय कूटनीति के जानकार इससे सहमत नहीं हैं। इसी तरह से कतर में वहां की अदालत द्वारा जासूसी के आरोप में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा को भी तरह तरह से जोड़ा जा रहा है। एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि दुनिया में इस समय कई पेंच फंसे हुए हैं। दुनिया की महाशक्तियां उलझी हुई हैं। रूस-यूक्रेन के साथ युद्ध लड़ रहा है। इस्राइल हमास पर सैन्य कार्रवाई कर रहा है। अमेरिका उसके समर्थन में खड़ा है। रूस इस मामले में अमेरिका की आलोचना कर रहा है और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका को संदेश पर संदेश देने में लगे हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति आर्दोआन ने फलस्तीन के संगठन हमास को मातृभूमि के लिए लड़ने वाले मुजाहिद्दीन की संज्ञा दे दी है। दिलचस्प है कि ईरान लगातार हमास का समर्थन कर रहा है और चेतावनी भी दे रहा है। पूर्व राजनयिक का कहना है कि जब दुनिया में इतनी बड़ी उथल-पुथल चल रही हो तो तमाम अफवाहें भी उड़ती हैं। ऐसे समय में सुरक्षा, जांच और कूटनीति तथा विदेश नीति में लगी एजेंसियों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। सूत्र का मानना है कि इस पूरे में मामले में कहीं भी भारत को खींचना अभी ठीक नहीं है।

चीन और रूस के राष्ट्रपति क्या संदेश दे रहे हैं?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि इस्राइल-हमास युद्ध तत्काल रुकना चाहिए। वह इस युद्ध को विश्व मानवता पर बड़ा संकट बताते हैं। साथ में टू स्टेट थ्योरी और फलस्तीन की स्वतंत्रता, संप्रभुता का मुद्दा उठाते हैं। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के तेवर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलते जुलते हैं। इसके समानांतर इस्राइल की सैन्य कार्रवाई रुकने में अमेरिका को अपनी नाक नीची होती दिख रही है। इस्राइल हमास के खात्मे और सभी दुश्मनों को संदेश देने तक इसे जारी रखना चाहता है। कुल मिलाकर यह स्थानीय युद्ध नाक की लड़ाई में तब्दील होता जा रहा है और इसके दायरे में विस्तार का खतरा बढ़ रहा है।

माना जा रहा है कि ईरान को रूस और चीन का मौन समर्थन जारी है। ईरान न केवल इस्राइल को चेतावनी दे रहा है, बल्कि आगे बढ़कर खेल रहा है। ईरान के इशारे पर लेबनान में बैठा हिजबुल्ला इस्राइल के स्वाभिमान पर लगातार चोट कर रहा है। ईरान के पास खोने के लिए कुछ ज्यादा नहीं बचा है। यह पहला अवसर है जब ईरान अगुआ नजर आ रहा है और अरब देश धीमे स्वर में ही सही उसका साथ देते नजर आ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक स्थिति को समझने वाले संकेत कर रहे हैं कि इस्राइल को हिजबुल्ला और ईरान पर कार्रवाई में थोड़ी हिचक है। क्योंकि इससे न केवल कई मोर्चे खुलेंगे, बल्कि संभव है कि ईरान के समर्थन में कुछ और देश आ जाएँ। अमेरिका और इस्राइल की पूरी टीम इस पेचीदा समय में कूटनीतिक समाधान निकालने में जुटी है।

मध्य-पूर्व एशिया में क्या कर रहे हैं चीन के छह अत्याधुनिक युद्धपोत?
टाइप 052 डी गाइडेड मिसाइल, विध्वंसक, फ्रिगेट जिंगझोऊ समेत चीन के 06 अत्याधुनिक युद्धपोत मध्य एशिया में क्यों रुके हैं? यह युद्धपोत ओमान की नौसेना के साथ अभ्यास के बाद मध्यपूर्व एशिया में अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। समझा जा रहा है कि चीन इस बहाने से संदेश दे रहा है। अभी तक चीन की कूटनीति इस तरह का संदेश देने के पक्ष में नहीं रहती थी। बात समय की भी है। यह युद्धपोत ऐसे समय में मध्यपूर्व एशिया में तैनात हैं, जब अमेरिका के दो अत्याधुनिक युद्धपोत(जंगी बेड़ा) इस्राइल की सुरक्षा में क्षेत्र में हैं। सामरिक रणनीति के जानकारों का मानना है कि दरअसल यह अमेरिका को बताने का प्रयास है कि वह एकतरफा दादागिरी से बाज आए। यह दादागिरी विश्व शांति के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। अमेरिका की यात्रा से दो महीने पहले लौटे भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी का कहना है कि विश्व के इतिहास में यह समय महत्वपूर्ण है। वह कहते हैं कि हर मुश्किल दौर एक रोशनी दिखाता है। देखना है, इस बार क्या दिशा मिलती है।

लंबा खिंचेगा युद्ध तो कीमत चुकाएंगे विकासशील और कम विकसित देश
इस्राइल छोटा सा देश है। उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में फैले उसके कारोबार पर टिकी है। पिछले दो दशक से अकेले भारत को वह दूसरे नंबर का हथियारों और साजो सामान की आपूर्ति करने वाला देश है। युद्ध के लंबा खिंचने पर उसकी अर्थव्यवस्था को काफी बड़ा झटका लगना तय है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि दुनिया की ताकत में अपना हिस्सा रखने वाले कुछ देश चाहते हैं कि यह लंबा खिंचे। इस युद्ध ने वैसे भी रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया का ध्यान अपनी तरफ कर रखा है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी इसकी काफी बड़ी कीमत चुकाएगी। उसकी चुनौती बढ़ रही है। चीन की अर्थव्यवस्था भी अपने बुरे दौर से गुजर रही है। यूक्रेन युद्ध में फंसे होने के कारण पिछले दो दशकों में रूस ने जो समृद्धि हासिल की थी, खत्म होने के कागार पर है। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले गुजरात कॉडर के एक आईएएस अधिकारी का कहना है कि पिछले तीन साल से विश्व अर्थव्यवस्था को संभलने का अवसर नहीं मिल पा रहा है जो कोविड-19 के बाद से लगातार हिचकोले खा रही है। सूत्र का कहना है कि मौजूदा दौर में यह संकट बढ़ रहा है। इसके जारी रहने से न केवल आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ेगा, बल्कि भुखमरी, बीमारी समेत तमाम नए बड़े संकट भी खड़े होंगे।

 

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