नॉर्थ इंडिया के एक शहर में दो ऐसी महिलाएं रहती हैं जो पिछले 40 सालों से एक छत के नीचे रह रही हैं। इनमें से एक का तलाक भी हो चुका है और उसके बच्चे भी हैं। दोनों जब 30 साल की थीं तो एक साथ रहने का फैसला किया। पेश है उनके इस अनोखे रिश्ते से जुड़े कुछ ऐसे किस्से जो पढ़ने वालों को झकझोर कर रख देता है…
”मैं और मेरी सहेली लेस्बियन नहीं हैं। यानी हम एक-दूसरे से शारीरिक रूप से आकर्षित नहीं हैं। हमारा आकर्षण रूहानी है। इसीलिए हम करीब 40 साल से साथ रह रहे हैं। अब 70 के हो चले हैं। जब साथ रहने का फैसला किया तब करीब 30 के थे। जवानी के उन दिनों में रोमांच से ज्यादा सुकून की तलाश थी। मुझे भी और उसे भी। मेरे और मेरी सहेली के एक साथ रहने के फैसले की ये सबसे बड़ी वजह है।”
”हम दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। मुझे इस उम्र में भी चटख रंग पसंद आते हैं। लिपस्टिक लगाना सुहाता है, लेकिन उसको फीकी चीज़ें ज़्यादा पसंद आती हैं। उम्र 70 की होने को है फिर भी मैं तो हील वाली सैंडिल पहनती हूं और वो हर व़क्त डॉक्टर्स स्लीपर पहनकर घूमती है। मैं टीवी देखती हूं तो वो मोबाइल में घुसी रहती है. कहती है, ‘बुढ़ापे में तुमने क्या रोग पाल लिया है।’यही हमारी जिंदगी है। थोड़ी सी नोक-झोंक और अपने तरीके से जीने की पूरी आजादी। हम दो लोग एक घर में तो रहते हैं, लेकिन हमने एक दूसरे की दुनिया को अनछुआ ही छोड़ रखा है। आजकल की शादियों में शायद इतना खुलापन ना हो। उम्मीदें अक्सर ज्यादा होती हैं तो रिश्ते उनके बोझ तले कमजोर होकर टूट भी जाते हैं।”
”वैसे मेरी शादी भी टूटी, पर जीवन का वो अध्याय अब बीत गया, उसके पन्ने पलटना मुझे पसंद नहीं। बच्चे बड़े हो गए हैं और अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गए हैं। मेरी सहेली तो हमेशा अकेले रहने में यकीन करती थी। बल्कि अब भी करती हैं। हम साथ हैं भी और नहीं भी। इतने साल बाद भी कई बार ऐसा होता है कि हमें एक-दूसरे की कोई नई आदत पता चल जाती है। यही हमारे रिश्ते की ख़ूबसूरती है। हम आज भी एक-दूसरे को पूरी तरह नहीं जानते हैं और यही वजह है कि ‘चार्म’ बना हुआ है।” ”लोग हमसे पूछते हैं कि आप दोनों बोर नहीं हो जातीं सिर्फ एक-दूसरे को देखकर? लेकिन सच तो ये है कि हम एक-दूसरे से बहुत कम बात करते हैं। हम एक घर में तो रहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम सिर्फ खाने की मेज पर मिलते हैं और फिर अपने-अपने काम पर लग जाते हैं।”
”जब हम नौकरी करते थे तभी से ये आदत है, जो आज भी जस की तस बनी हुई है। शुरू-शुरू में जब कामवाली आती थी तो बड़े पसोपेश में रहती थी। हर दिन पूछती थी कि क्या हमारा कोई रिश्तेदार नहीं है? कोई अपना जो अभी जवान हो और हमारे साथ रह सके? मैं उससे बहस नहीं करना चाहती थी। उसे क्या समझाती कि रिश्तेदारों और दोस्तों के मामले में हम बहुत धनी हैं, लेकिन एक-दूसरे के साथ रहने की ये जिंदगी सोच-समझकर चुनी है।” ”वो हमें हर रोज डराती थी कि कोई मारकर चला जाएगा, घर में चोरी हो जाएगी…मैं उसकी बातें सुनकर हंसती थी। एक दिन उसको बैठाकर कह डाला कि हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं है जो चोर यहां आए और खुश होकर जाए। चोर अगर आएगा भी तो सफेद-भूरे रंग से पुती हमारे घर की दीवारों को देखकर समझ जाएगा कि यहां कैसे लोग रहते हैं। मेरी बात उसे कितनी समझ आई ये तो नहीं पता, लेकिन समय-समय पर वो हमारे इस तरह रहने पर अफसोस जरूर जता देती है।”
”सच ये है कि हमारी जिंदगी वैसी ही है जैसी हमने सोची थी। मैं आराम से उठती हूं। हमारी ज़िंदगी में हड़बड़ी नहीं है। मैं कभी नहीं चाहती थी कि जब मैं सुबह सोकर उठूं तो अपने अलावा हर चीज की टेंशन मेरे दिमाग में रहे। इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि रिश्तों की जिम्मेदारी से बचने के लिए हम दोनों ने ये फैसला किया। हमारे घर आने वालों को या जिनसे हम मिलते हैं उन्हें लगता है कि हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं है तो हम मजे में हैं, लेकिन क्या अपनी जिम्मेदारी कम होती हैं? ””हम दोनों अपनी जरूरतों के लिए किसी का मुंह नहीं ताकते। हम खुद की जिम्मेदारी तरीके से निभाते हैं। पहले लोगों को लगता था कि हम साथ रहते हैं तो कुछ गड़बड़ जरूर है। हमारे बीच में कुछ और है पर लोगों की सोच को ठीक करना या अहमियत देना मेरी फितरत नहीं है। मैं सिंदूर लगाती हूं, बिछिया पहनती हूं, नाक में सोना भी पहनती हूं। जब तक दिल कर रहा है पहनूंगी, मन भर जाएगा तो नहीं पहनूंगी।”
”इस रिश्ते में रहते हुए जो एक बात समझ आई वो ये कि आप जिंदगी तो किसी के भी साथ बिता सकते हैं, लेकिन जी उसी के साथ सकते हैं जो आपके साथ तो रहे, लेकिन आप में घुसे नहीं। लोगों को हमारी संतुलित जिंदगी बड़ी अजीब लगती है। समझ ही नहीं आता कि दो सहेलियां हैं, अपना खा रही हैं, रह रही हैं। न तो किसी से कुछ मांगती हैं, न कहती हैं, अपने में रहती हैं। इसमें गलत क्या है… ये अजीब क्यों है?”