नई दिल्ली। बजट पेश होने वाला है, ऐसे में सभी उद्योगों में उम्मीद की जा रही है कि समर्थकारी बजट आर्थिक सुधारों की पहल को दिशा देगा। ऐसे में मोबाइल हैंडसेट उद्योग को भी बजट से काफी उम्मीदें हैं।
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आखिर ‘कैशलेस अर्थव्यवस्था’ की पहल को आगे ले जाने में इसी सेक्टर की अहम भूमिका होगी। मोबाइल फोन कैशलेस डिजिटल अर्थव्यवस्था का केंद्रीय बिंदु बन गया है। इसे उसी के लिए एक मेटा संसाधन के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि देश में अभी भी 65 प्रतिशत फीचर फोन का इस्तेमाल होता है। ऐसे में यह सरकार का प्रयास होना चाहिए कि वह स्मार्टफोन के उपयोग को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करे, ताकि वास्तविक डिजिटलीकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
डिजिटल अर्थव्यवस्था को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए उद्योग ने हाल ही में फीचर फोन के सेगमेंट में एक समाधान की व्यवस्था की है। मगर, यह केवल यूजर बेस के विस्तार का एक सामरिक तरीका है। लंबे समय के समाधान के लिए हमें अधिक स्मार्टफोन यूजर्स की जरूरत होगी।
सरकार को स्मार्टफोन्स के लिए बहु-स्तरीय टैक्स स्लैब स्ट्रक्चर बनाना चाहिए। 10,000 रुपए तक के सस्ते स्मार्टफोन्स को कर के दायरे से बाहर रखना चाहिए। हालांकि, इसके जरिए सरकार को 69 फीसद राजस्व मिलता है। इस रेंज के फोन्स अफोर्डेबल रेंज में आता है।
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वहीं, 10 हजार से 20 हजार तक के फोन वैल्यू फॉर मनी हैं। 20 से 50 हजार रुपए तक के फोन प्रीमियम श्रेणी में आते हैं, जबकि 50 हजार रुपए से अधिक के फोन सुपरप्रीमियम श्रेणी में आते हैं।