जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। यह माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत बहुत कठिन होता है और निर्जला रखा जाता है। व्रत के दौरान पूजा-पाठ के बाद जितिया व्रत कथा को सुनना या पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है। इस कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है, तो आइए यहां जितिया व्रत कथा का पाठ करते हैं।
जितिया व्रत कथा
एक जंगल में एक सेमल के पेड़ पर एक चील रहती थी, और पास की झाड़ियों में एक सियारिन रहती थी। दोनों बहुत अच्छी दोस्त थीं। एक दिन उन्होंने कुछ महिलाओं को जितिया व्रत की बातें करते हुए सुना। महिलाओं ने बताया कि यह व्रत संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। चील और सियारिन ने भी यह व्रत रखने का फैसला किया।
शाम तक दोनों ने निर्जला व्रत रखा, लेकिन रात होते ही सियारिन को बहुत तेज भूख लगी। भूख बर्दाश्त न होने पर उसने मांस और हड्डी खा ली और अपना व्रत तोड़ दिया। जब यह बात चील को पता चली, तो उसने सियारिन को खूब फटकारा और कहा कि जब व्रत नहीं रखना था, तो संकल्प क्यों लिया? वहीं, चील ने अपना व्रत पूरी निष्ठा के साथ पूरा किया।
अगले जन्म में, चील और सियारिन ने दो बहनों के रूप में जन्म लिया। सियारिन बड़ी बहन बनी, जिसकी शादी एक राजकुमार से हुई। चील छोटी बहन बनी, जिसकी शादी एक मंत्री के बेटे से हुई।
शादी के बाद, सियारिन को कई बच्चे हुए, लेकिन सभी जन्म लेते ही मर जाते थे। वहीं, चील के बच्चे हमेशा स्वस्थ और सुंदर होते थे। यह देखकर सियारिन अपनी बहन से जलने लगी। उसने कई बार अपनी बहन के बच्चों को मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार असफल रही।
एक दिन, सियारिन को अपनी पिछली जिंदगी और व्रत तोड़ने की गलती का एहसास हुआ। उसे समझ आया कि उसके बच्चे इसीलिए नहीं जीवित रह पाते, क्योंकि उसने पिछले जन्म में व्रत का अपमान किया था। पश्चाताप करके उसने अपनी बहन से माफी मांगी और फिर से जितिया व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से सियारिन को सुंदर और स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं, उन्हें कभी संतान से जुड़ी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता है।
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