उत्तर प्रदेश की फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. पिछले तीस साल से योगी की कर्मभूमि रही गोरखपुर में बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल को सपा के प्रवीन कुमार ने मात दी. वहीं आजादी के बाद पहली बार 2014 में मोदी लहर में फूलपुर जीतने के बाद उपचुनाव में बीजेपी के कौशलेंद्र पटेल को सपा प्रत्याशी नागेंद्र पटेल ने बुरी तरह से शिकस्त दी है. बता दें कि पिछले साल मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा और केशव प्रसाद मौर्य ने डिप्टी सीएम बनने के बाद इस्तीफा दिया था. जिसके बाद उपचुनाव हुए हैं, जिन पर बसपा के समर्थन से सपा जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. उपचुनाव में बीजेपी के हार के पांच ऐसे कारण रहे हैं, जिनके चलते योगी और केशव की संसदीय सीटें बीजेपी नहीं बचा सकी.
बता दें कि पिछले साल मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा और केशव प्रसाद मौर्य ने डिप्टी सीएम बनने के बाद इस्तीफा दिया था. जिसके बाद उपचुनाव हुए हैं, जिन पर बसपा के समर्थन से सपा जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. उपचुनाव में बीजेपी के हार के पांच ऐसे कारण रहे हैं, जिनके चलते योगी और केशव की संसदीय सीटें बीजेपी नहीं बचा सकी.
उपचुनाव में बीजेपी की हार के 5 कारण-
1. योगी-केशव के बीच अदावत
सूबे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम की अदावत जगजाहिर है. दोनों के बीच की दुश्मनी बीजेपी के लिए उपचुनाव में हार की वजह बनी. योगी और केशव अपने अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए एक दूसरे की संसदीय सीटों से बीजेपी उम्मीदवार की हार को देखना चाहते थे. इसी के मद्देनजर एक दूसरे की सीट पर पर दोनों बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव जैसी मेहनत नहीं किए. इसी का खामियाजा बीजेपी उम्मीदवारों को हार से चुकाना पड़ा है.
2. गोरखपुर योगी की नापसंद, फूलपुर में बाहरी
गोरखपुर में बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल के बारे में कहा जाता है कि योगी की मर्जी के खिलाफ पार्टी ने उतारा था. योगी उपेंद्र की जगह धर्मेंद्र सिंह को प्रत्याशी चाहते थे. कहा जाता है कि पार्टी ने शिव प्रताप शुक्ला की पसंद के उपेंद्र शुक्ल को मैदान में उतारा था. माना जाता है इसी का खामियाजा उपेंद्र शुक्ल को हार के रूप में चुकाना पड़ा है. वहीं फूलपुर में बीजेपी प्रत्याशी कौशलेंद्र पटेल का बाहरी होना भारी पड़ा. कौशलेंद्र पटेल चुनार के हैं और वाराणसी से सियासत करते रहे हैं. पार्टी ने उन्हें फूलपुर में पटेल बहुल सीट होने के चलते मैदान में उतारा था. वहीं सपा ने फूलपुर क्षेत्र के नागेंद्र पटेल को टिकट दिया. बाहरी बनाम क्षेत्रीय पटेल के बीच में नागेंद्र कौशलेंद्र पर भारी पड़े.
3. विपक्ष की सोशल इंजीनियरिंग
गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए सपा-बसपा ने 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर हाथ मिला लिया है. इसके चलते दोनों सीटों पर ओबीसी-दलित के साथ-साथ मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर सपा उम्मीदवार के साथ खड़े रहे और उन्हें कन्फ्यूजन की हालत से गुजरना नहीं पड़ा. जबकि बीजेपी उपचुनाव में सोशल इंजीनियरिंग बनाने में सफल नहीं हो सकी. 1993 की तरह फिर एक बार सपा-बसपा की एकजुटता जीत में बदल गई.
4 . एक साल में फीका पड़ा भगवा
यहां सवाल उठता है कि एक साल पहले वाली मोदी लहर अब मंद पड़ने लगी है. योगी के साल के शासन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि गिनाने के लिए बीजेपी के पास नहीं थी. मोदी और योगी हसीन सपने दिखाकर और वादे करके सूबे की सियासी जंग फतह किया था. उस रंग अब फीका पड़ने लगा है. इसी का खामियाजा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हार के रूप में चुकाना पड़ा है.
5. उपचुनाव में बीजेपी की लगातार हार
उपचुनाव में बीजेपी को 2014 के बाद से लगातार हार का सिलसिला जारी है. मध्य प्रदेश के रतलाम-झबुआ लोकसभा सीट पर हुए चुनाव से बीजेपी को जो हार मिली है, वो पंजाब के गुरुदासपुर, राज्यस्थान के अजमेर, और अलवर से होते हुए यूपी के फूलपुर और गोरखपुर में भी वैसा ही नतीजा देखने को मिला. हालांकि उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी को जीत मिलती है, लेकिन बीजेपी के साथ उलटा हो रहा है.
 TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
				 
						
					 
						
					