उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 से वे आईजीएमसी शिमला के मेडिसिन विभाग की ओपीडी में इस विषय पर अध्ययन करते आए हैं।
उन्होंने कहा कि पुरुषों में औसत वसा कुल वजन से 20 प्रतिशत से कम और महिलाओं में 25 प्रतिशत से कम रहना चाहिए, मगर इससे दोगुना पाया गया है। अगर वे एक दशक पहले की की बात करें तो पहले पुरुष ज्यादा आते थे।
यानी, औसतन दो घंटे से ज्यादा देखती हैं। जब आर्थिक उछाल नहीं आया था। महिलाएं उस वक्त घरों में काम खूब करती थीं। अब घर में गैस आ गई है और चूल्हा नहीं है। वाशिंग मशीनें जैसे उपकरण भी आ गए हैं। पहले रूटीन का खाना मिलता था।
अब बच्चे की डिलीवरी के बाद एक औसत महिला छह से नौ महीने में औसत 5.5 किलोग्राम घी खाती है। डॉ. मोक्टा ने कहा कि आईजीएमसी की ओपीडी में जो भी डायबिटीज वाली महिलाएं आईं, उनमें 30 प्रतिशत की उम्र 30 से 40 साल पाई गई।
यही हालत हिमाचल में भी है। ऐसे में बच्चे के भी मोटे होने के चांस रहते हैं। अगर किसी शिशु का वजन 3.5 किलो से ज्यादा है तो उस बच्चे के बडे़ होने पर शूगर की चपेट में जल्दी आने की संभावना होती है।
सामान्य महिला में 55 साल तक दिल की बीमारी नहीं होती। मगर डायबिटिक महिला में दिल की बीमारी ज्यादा नुकसान करती है।