कोटेश्वर महादेव जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से तीन किमी. चोपड़ा मोटरमार्ग पर अलकनंदा नदी तट पर स्थित है। यहां भगवान शिव कण कण में विराजमान हैं। यहां हजारों की संख्या में भक्त श्रावन मास में दर्शनों को आते हैं तथा महारुद्राभिषेक कर भगवान की सभी पूजाएं करते हैं। महाशिवरात्रि पर भी संतानहीन दंपती विशेष अनुष्ठान करते हैं तथा उनकी मनोकामना पूरी होती है। इतिहास कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओं का प्रख्यात मंदिर है, जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था, इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण किया था। चारधाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय आस पास जनपदों से इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय कोटेश्वर मंदिर में स्थित गुफा में साधना की थी। गुफा के अंदर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग यहां प्राचीन काल से ही स्थापित है। इस मंदिर में भोलेनाथ ने शाखा के रूप में दिए थे मां पार्वती को दर्शन यह भी पढ़ें महंत शिवानंद गिरी महाराज ने बताया कि कोटेश्वर में कण-कण में भगवान शिव विराजमान हैं। यहां लाखों की संख्या में शिवलिंग हैं। यह पूरी भूमि भगवान शिव की है। तल्लानागपुर के साथ ही पूरे उत्तराखंडवासियों और चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है। यहां पर जो भी भक्त सच्चे मन से आता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। निसंतान दंपती भी मंदिर में पूजा कर उन्हें भगवान फल देते हैं।

इस मंदिर में हैं लाखों शिवलिंग मौजूद, मनोकामनाएं करते हैं पूरी

कोटेश्वर महादेव जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से तीन किमी. चोपड़ा मोटरमार्ग पर अलकनंदा नदी तट पर स्थित है। यहां भगवान शिव कण कण में विराजमान हैं। यहां हजारों की संख्या में भक्त श्रावन मास में दर्शनों को आते हैं तथा महारुद्राभिषेक कर भगवान की सभी पूजाएं करते हैं। महाशिवरात्रि पर भी संतानहीन दंपती विशेष अनुष्ठान करते हैं तथा उनकी मनोकामना पूरी होती है। कोटेश्वर महादेव जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से तीन किमी. चोपड़ा मोटरमार्ग पर अलकनंदा नदी तट पर स्थित है। यहां भगवान शिव कण कण में विराजमान हैं। यहां हजारों की संख्या में भक्त श्रावन मास में दर्शनों को आते हैं तथा महारुद्राभिषेक कर भगवान की सभी पूजाएं करते हैं। महाशिवरात्रि पर भी संतानहीन दंपती विशेष अनुष्ठान करते हैं तथा उनकी मनोकामना पूरी होती है।    इतिहास   कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओं का प्रख्यात मंदिर है, जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था, इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण किया था। चारधाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय आस पास जनपदों से इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।   मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय कोटेश्वर मंदिर में स्थित गुफा में साधना की थी। गुफा के अंदर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग यहां प्राचीन काल से ही स्थापित है।    इस मंदिर में भोलेनाथ ने शाखा के रूप में दिए थे मां पार्वती को दर्शन यह भी पढ़ें महंत शिवानंद गिरी महाराज ने बताया कि कोटेश्वर में कण-कण में भगवान शिव विराजमान हैं। यहां लाखों की संख्या में शिवलिंग हैं। यह पूरी भूमि भगवान शिव की है। तल्लानागपुर के साथ ही पूरे उत्तराखंडवासियों और चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है। यहां पर जो भी भक्त सच्चे मन से आता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। निसंतान दंपती भी मंदिर में पूजा कर उन्हें भगवान फल देते हैं।

इतिहास 

कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओं का प्रख्यात मंदिर है, जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था, इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण किया था। चारधाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय आस पास जनपदों से इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। 

मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय कोटेश्वर मंदिर में स्थित गुफा में साधना की थी। गुफा के अंदर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग यहां प्राचीन काल से ही स्थापित है। 

महंत शिवानंद गिरी महाराज ने बताया कि कोटेश्वर में कण-कण में भगवान शिव विराजमान हैं। यहां लाखों की संख्या में शिवलिंग हैं। यह पूरी भूमि भगवान शिव की है। तल्लानागपुर के साथ ही पूरे उत्तराखंडवासियों और चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है। यहां पर जो भी भक्त सच्चे मन से आता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। निसंतान दंपती भी मंदिर में पूजा कर उन्हें भगवान फल देते हैं।
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