देश की नवरत्न कंपनियाें ने जिस उम्मीद के साथ उत्तराखंड में अपने दफ्तर खोले थे, जल विद्युत परियोजनाओं के अधर में लटकने की वजह से अब उन पर ताले जड़ने पड़ रहे हैं। हजारों करोड़ रुपये का निवेश फंस चुका है और दूर-दूर तक परियोजनाओं के धरातल पर उतरने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। अब पलायन ही उनके सामने अंतिम विकल्प है। एसजेवीएनएल और एनएचपीसी ने उत्तराखंड से अपने दफ्तर बंद कर दिए हैं। एनटीपीसी भी इसी राह पर है।
एसजेवीएनएल का पलायन
एसजेवीएनएल लिमिटेड को राज्य में तीन प्रोजेक्ट मिले थे। इनमें से उत्तरकाशी में टोंस पर 60 मेगावाट की नैटवाड़ मोरी परियोजना पूरी होने के बाद हाल में कमिशन हो गई है। दूसरी उत्तरकाशी में टोंस पर ही बनने वाली 51 मेगावाट की जखोल सांकरी परियोजना और चमोली में अलकनंदा की सहायक पिंडर पर बनने वाली 252 मेगावाट की देवसारी डैम परियोजना अधर में लटकी हुई है। कोई आशा न देख कंपनी ने देहरादून से अपना रीजनल ऑफिस बंद कर दिया है। यहां जो भी ऑफिस थे, वह बेच दिए हैं।