उत्तराखंड में भूकंप के 134 फॉल्ट सक्रिय स्थिति में हैं। ये भूकंपीय फॉल्ट भविष्य में सात रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता के भूकंप लाने की क्षमता रखते हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ‘एक्टिव टेक्टोनिक्स ऑफ कुमाऊं एंड गढ़वाल हिमालय’ नामक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है। सबसे अधिक 29 फॉल्ट उत्तराखंड की राजधानी दून में पाए गए हैं। गंभीर यह कि कई फॉल्ट लाइन में बड़े निर्माण भी किए जा चुके हैं। गढ़वाल में कुल 57, जबकि कुमाऊं में 77 सक्रिय फॉल्ट पाए गए।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरुमल के मुताबिक भूकंपीय फॉल्ट का अध्ययन करने के लिए गढ़वाल व कुमांऊ मंडल को अलग-अलग जोन में विभाजित किया गया। फॉल्ट की पहचान के लिए सेटेलाइट चित्रों का सहारा लिया गया। इसके बाद धरातल पर जाकर हर एक फॉल्ट की लंबाई नापी गई और उनकी सक्रियता का भी पता लगाया गया।
अध्ययन में पता चला कि इन सभी फॉल्ट में कम से कम 10 हजार साल पहले सात व आठ रिक्टर स्केल तक के भूकंप आए हैं। जबकि इनकी सक्रियता यह बता रही है कि भविष्य में इनसे कभी भी सात रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है। कुमाऊं मंडल में रामनगर से टनकरपुर के बीच कम दूरी पर ऐसे भूकंपीय फॉल्टों की संख्या सबसे अधिक पाई गई।
सर्वाधिक लंबाई वाले फॉल्ट (लंबाई मीटर में)
देहरादूनजोन
कुल फॉल्ट 29
सबसे अधिक लंबाई, भाववाला 1379, कोटरा 1373
लालढांग-कोटद्वार जोन
कुल फॉल्ट 11
सबसे अधिक लंबाई, त्रिलोकपुर 1776
कोटादून जोन
कुल फॉल्ट 17
सर्वाधिक लंबाई, देवीपुर 1162
रामनगर जोन
कुल फॉल्ट 11
सबसे अधिक लंबाई, रामनगर 1172, सावलदेह 1065
रामनगर-दो जोन
कुल फॉल्ट 14
सर्वाधिक लंबाई, किशनपुर 1676, बेलपड़ाव 1420
रामनगर-तीन जोन
कुल फॉल्ट 05
सर्वाधिक लंबाई, भंडारपानी 1398
हल्द्वानी जोन
कुल फॉल्ट, 10
सर्वाधिक लंबाई, उजावा 702
हल्द्वानी (चोरगलिया) जोन
कुल फॉल्ट 06
सर्वाधिक लंबाई, चोरगलिया 2584
नंधौर जोन
कुल फॉल्ट 15
सर्वाधिक लंबाई, भोरगट गाड, 1014
टनकपुर जोन
कुल फॉल्ट 16
सर्वाधिक लंबाई, बूम रेंज 1169
फॉल्ट लाइन पर निर्माण खतरनाक
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरुमल के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में अब तक ऐसा अध्ययन नहीं किया गया था। लिहाजा, फॉल्ट लाइन पर भी निर्माण किए जा चुके हैं। जबकि सक्रिय फॉल्ट लाइन पर धरातलीय हलचल जारी रहते हैं। इस भाग पर पुराने पहाड़ नए पहाड़ पर चढ़ते रहते हैं।
ऐसे में इन पर निर्माण करना खतरनाक होता है। यदि निर्माण किया भी जाना है तो उसमें फॉल्ट की सक्रियता के अनुसार तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए।