उत्तराखंड में पर्वतीय जिले अब रिकवरी मोड पर, इन जिलों में तेजी से ठीक हो रहे मरीज

लॉकडाउन 3.0 में मिली छूट के बाद सैकड़ों की संख्या में प्रवासी उत्तराखंड लौटे, जिनमें ज्यादातर महाराष्ट्र, दिल्ली, गुरुग्राम सहित अन्य रेड जोन क्षेत्रों से आए पहाड़ी जनपदों के लोग थे। ऐसे में पहाड़ पर इस बीमारी का बोझ एकाएक बढ़ गया। स्थिति यह कि कोरोना संक्रमण दर भी मैदान की तुलना में पहाड़ी में ज्यादा रही। पर अच्छी बात यह कि यही पर्वतीय जिले अब रिकवरी मोड पर हैं। जिस तेजी से यहां मामले बढ़े थे अब यहां उसी रफ्तार से रिकवरी रेट भी बढ़ा है।

उत्तराखंड में कोरोना की दस्तक पंद्रह मार्च को हुई। उसके बाद हर अंतराल पर मरीजों की संख्या बढ़ती गई। लेकिन, राहत की बात यह रही कि पहाड़ी जिले संक्रमण से मुक्त रहे। पर लॉकडाउन के तीसरे चरण में मिली छूट के बाद प्रवासियों का उत्तराखंड लौटना शुरू हुआ तो कोरोना वायरस पहाड़ को भी अपनी जद में लेना शुरू कर दिया। न सिर्फ वायरस ने तेजी से पैर पसारा बल्कि संक्रमण दर भी लगातार बढ़ती गई। प्रदेश की बात करें तो प्रवासियों की वापसी से पहले राज्य में संक्रमण दर जहां एक फीसद से नीचे थी, यह बढ़कर साढ़े चार प्रतिशत तक पहुंच गई। पहाड़ी जिलों में संक्रमण दर इससे भी कई ज्यादा रही है।

टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पौड़ी, पिथौरागढ़ समेत अन्य कुछ जिलों ने संक्रमण दर में उन जिलों को भी पीछे छोड़ दिया जो शुरुआती दौर से ही कोरोना की गिरफ्त में रहे हैं। पर राहत की बात यह कि जिस तेजी से यहां मामले आए थे अब उसी तेजी से लोग रिकवर भी होने लगे हैं। टिहरी इसका उदाहरण है, जहां संक्रमण दर को लेकर बनी चिंता के बीच अब तक 86 फीसदी मरीज डिस्चार्ज भी हो गए हैं। रिकवरी रेट में यह जिला तीसरे नंबर पर है, जबकि अल्मोड़ा पहले और चंपावत दूसरे नंबर पर।

प्रसूता की मौत मामले में घिरा स्वास्थ्य महकमा

देहराखास निवासी प्रसूता की मौत मामले में स्वास्थ्य विभाग की तीन सदस्यीय समिति ने जांच पूरी कर ली है। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. बीसी रमोला ने सोमवार को जांच रिपोर्ट स्वास्थ्य महानिदेशालय भेज दी। इस मामले में सीधे तौर पर अस्पतालों की लापरवाही और चिकित्सकों की संवेदनहीनता सामने आई है। महिला को न तो प्रसव पूर्व सही उपचार मिला और न ही बाद में। इमरजेंसी केस को भी एक से दूसरे अस्पताल ठेला गया। देखना यह है कि स्वास्थ्य महानिदेशालय इस मामले में क्या कार्रवाई करता है।

24 वर्षीय प्रसूता की बीते गुरुवार को दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मौत हो गई थी। बताया गया कि पहले महिला कोरोनेशन, फिर गांधी अस्पताल और वहां से रेफर होकर दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल आई थी। लेकिन, कोरोना संदिग्ध नहीं होने पर दून अस्पताल से चिकित्सकों ने उसे नॉन कोविड-हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया। इसके बाद दो निजी अस्पतालों का चक्कर काट महिला वापस दून पहुंची। इस सबमें उसकी हालत ज्यादा बिगड़ गई।

सीएमओ स्तर पर इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की गई थी। जांच में पाया गया कि महिला में खून की अत्याधिक कमी थी। घर पर प्रसव होने से उसकी स्थिति और बिगड़ गई। वह कुछ दिन पूर्व ही जांच के लिए अस्पताल गई थी, लेकिन चिकित्सकों ने मामले की गंभीरता को नजरअंदाज किया। बाद में भी जब वह वापस अस्पताल पहुंची तो असंवेदनशीलता बरती गई।

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