लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 73 सीटों पर मिली बंपर जीत का सिलसिला यूपी में ही आकर ठहर गया। त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर में भगवा फहराने के जश्न की खुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के होश उड़ा दिए।
एक वर्ष पहले ही इन लोकसभा सीटों के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की सभी सीटें भाजपा ने बड़े अंतर से जीती थीं। दोनों सीटें यूपी की मौजूदा राजनीति में दो बड़े और प्रभावी चेहरों की प्रतिष्ठा से जुड़ी थीं।
जाहिर है कि ये नतीजे भाजपा संगठन व सरकार दोनों के लिए कई सबक और संदेश लेकर आए हैं। भाजपा के रणनीतिकार गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि एक वर्ष पहले तक जिन सीटों पर जनता की पहली पसंद भाजपा थी, वहां लोगों ने उसे किन कारणों से खारिज कर दिया। इस हार को चुनौती मानकर और इनके संदेशों की सच्चाई स्वीकार कर उन्हें नए सिरे से अगले चुनाव की तैयारी करनी होगी।
बसपा के समर्थन के बाद सपा को मिली जीत आगे भी विरोधियों को मिलकर भाजपा के खिलाफ लड़ने की ताकत देगी। विश्व हिंदू परिषद ने भी इस हार पर भाजपा को आईना दिखाते हुए इसे पार्टी संगठन की हार करार दिया है। साथ ही आत्ममंथन और कार्यकर्ताओं की चिंता करने की सलाह देते हुए चेताया है कि सुधार न हुआ तो परिणाम और बुरे होंगे।
क्यों टूटा तिलिस्म
नतीजों ने अटलबिहारी वाजपेयी की कविता ‘टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं’ की याद दिला दी। नतीजों से भाजपा की रणनीति और नेताओं का तिलिस्म टूट गया है। भाजपा के बूथ मैनेजमेंट व जनता से लगातार संवाद, सरकार के कार्यों से जनता में भाजपा पर भरोसा और उत्साह भरने, सत्ता के जनता के दरवाजे पहुंचने, अधिकारियों के जनता के प्रति समर्पण भाव से काम करने तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के दावे चाहे जितने होते रहे हों लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है।
अयोध्या आंदोलन के बाद से अब तक गोरखपुर भाजपा की जीती हुई सीट ही मानी जाती थी। लेकिन वही सीट भाजपा के हाथ से ऐसे समय निकल गई जब इस सीट से पांच बार जीते और पूर्वांचल की प्रतिष्ठा से जुड़े गोरखनाथ मंदिर के महंत मुख्यमंत्री हैं। आजादी के बाद 2014 में पहली बार फूलपुर में मिली जीत भी हाथ से निकल गई।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, अफसरों पर निर्भरता से बिगड़ा खेल
भाजपा के एक पूर्व महामंत्री कहते हैं कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, अधिकारियों पर निर्भरता, सरकार के निर्णयों पर आत्मप्रशंसा, संगठन के जिम्मेदार लोगों का समर्पण और समर्पित कार्यकर्ताओं से संवादहीनता हार का कारण है। एक अन्य पदाधिकारी का कहना है कि मंत्रियों के घर इंतजार करना पड़े, तो बात समझ में आती है लेकिन संगठन के लोग भी बात नहीं सुनते थे। जमीनी कार्यकर्ताओं के बजाय पैराशूट नेताओं को पद व प्रतिष्ठा दी जाएगी, विपक्ष में रहते जेल जाने और लाठी खाने वाले कार्यकर्ताओं की जगह गणेश परिक्रमा करने वालों को पद प्रतिष्ठा मिलेगी, तो ऐसे ही नतीजे आएंगे।
कागजी कसरत व चेहरा दिखाऊ संस्कृति
इस हार ने भाजपा संगठन की व्यूह रचना पर भी सवाल उठाया है। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठी है। कार्यकर्ताओं की मदद से लगातार संपर्क, संवाद और बूथ मैनेजमेंट के अभियान चलाती चली आ रही है। ऐसे में लोगों ने भाजपा को यह संदेश दे दिया है कि उन्हें सिर्फ बातें नहीं, बल्कि काम चाहिए।