इस गांव में आज भी रात भर छन छन करती घूमती है

नई दिल्ली: भूतों को लेकर हमारे देश में कई अफवाहें उड़ती हैं कि भूत होते हैं या नहीं कहीं कहीं तो भूतों को देखने का दावा तक किया गया है। तो कोई कहता है वो भूत का शिकार हुआ है।

भूत
ये एक ऐसी ही कहानी है जो सच है दिल थाम कर पढिए
मेरा नाम बिपिन गरेजा है। और मै मणिपुर का रहवासी हूँ। मै कुछ समय तक मुंबई में रहा हूँ, चूँकि मुझ पर फिल्म डाइरेक्टर बनने का भूत सवार था। थोड़े दिन तक असिस्टेंट फिल्म डायरेक्टर का काम भी मिला, पर जैसा सोचा था वैसी सफलता हाथ लग नहीं रही थी।
इस लिए मैने फिल्म डायरेक्शन का काम छोड़ कर राइटिंग का काम शुरू कर दिया। ग्रुप बन चुका था इस लिए काम आसानी से मिल रहा था। और script (कंटेंट) ऑनलाइन ही ग्राहक को भेजना होता था तो यह काम इंटरनेट की सहायता से किसी भी जगह से किया जा सकता था।
एक बार मुझे होर्रर स्क्रिप्ट लिखने का ऑफर आया। जिसमें गाँव की कहानी सेट करनी थी। तो मैने सोचा की रियल लोकेशन वाला फिल लाने के लिए किसी गाँव में कुछ दिन रहे आता हूँ। ताकि कहानी अच्छी बन सके। आगे काफी सोच विचार करने के बाद मुझे किसी नें सुझाव दिया की उत्तर प्रदेश में चंदन पुर गाँव है, जहां पर कई लोगों को भूत प्रेत के अनुभव हुए हैं। मैंने फौरन वहाँ की टिकट कटवाई। और अपने लैपटॉप के साथ वहाँ जा पहुंचा।
बस नें मुझे किसी कच्चे रास्ते पर उतारा, वहाँ आसपास कुछ पेड थे और एक सकरा रास्ता। एक पेड पर आठ दस कव्वे (crow) बैठे थे, मुझे देख कर वह सारे बेतहाशा चिल्लाने लगे। मै उन्हे अनदेखा कर के गाँव की और आगे बढ़ गया। आगे कुछ कच्चे मकान नज़र आए। मैं उन मकान की और जाने लगा तो बाहर बैठे लोग सटा-सट घर के अंदर चले गए और दरवाज़े बंद कर लिए। मुझे हैरत हुई।
मै वहीं एक मकान के पास झाड के नीचे बैठ गया। सोच रहा था की किस से मदद मांगू। तभी अचानक मेरी नज़र ऊपर पेड की डाल पर गयी। वहाँ पर एक डरावनी काली बिल्ली बैठी थी। जो मेरी और ऐसे घूर कर देख रही थी जैसे मेरा शिकार कर लेगी। मैंने उसे डराने की कोशिश की तो वह उल्टा मुझे ही घुररा कर डराने लगी। कुछ देर बाद मैंने उस को अनदेखा कर दिया और फिर से वहीं बैठ गया।
तभी अचानक उस बिल्ली नें पीछे से मेरी गरदन पर वार कर दिया। उसनें अपनें चारों बड़े दाँत मेरी गरदन पर गढ़ा दिए,,, और चारो पैरों के पंजों से मेरे कंधे नौचने लगी। मैने फौरन उसे दूर हटाया,,, और वहाँ से खड़ा हो गया।
यह सब चल रहा था तभी वहाँ पर एक डाकिया निकला और उसने मुझसे पूछा की मै वहाँ क्यूँ आया हूँ। मैंने उसे अपना मकसद बताया तो उसने कहा की यहाँ के लोग आप की कोई मदद नहीं करेंगे। यह सारे डरे सहमे लोग हैं। इस गाँव में रात को भूत प्रेत का त्रांडव होता है।
उस डाकिये नें कहा की सामने हमारा घर है वहाँ कोई नहीं रहता है। हम इस गाँव को छोड़ चुके हैं और पास के गाँव में रहने चले गए हैं। आप चाहे तो में उस बंद घर की चाबी आप को दे दूंगा।
 मैंने फौरन हां बोल दी, चूँकि वोही मेरी सब से बड़ी समस्या थी। अब गाँव में एक घर मिल गया था। और आगे फौरन मुझे अपना काम शुरू करना था। गले पर थोड़ी मरहम-पट्टी कर के मैंने काम शुरू कर दिया। कववे वाली बात, बिल्ली वाली बात, लोगों के घर में चले जाने की बात और भूत प्रेत की अफवाए इन सब को ताल-बद्ध तरीके से मैंने लिखना शुरू कर दिया। उस गाँव में मेरे लिए भर-पूर मसाला था। और डाकिये का मकान भी बड़ा था। तो शांति से में अपने काम में जुट गया।
रात के करीब दो बझे मेंने लिख कर अपना लैपटॉप स्विच ऑफ किया। और खिड़की से चौक पर नज़र डाली,,, और मै हस्ते हुए बोल पड़ा की,,, ज़रा देखू तो,,, भूत प्रेत का कुछ त्रांडव हो भी रहा है या,,, लोग वैसे ही सब को उल्लू बना रहे हैं।
खिड़की से जांक कर देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। एक आदमी एक लड़की का गला दबा रहा  था और एक आदमी उस बिल्ली वाले पेड पर रस्सी लटका रहा था। फिर उन्होने उस लड़की को बालों से पकड़ कर पेड के पास घसीटा और उसके गले में रस्सी डाली।
इतना देख कर मैंने कोलाहल मचा दिया,,, मेरे हाथ में जो भी कुछ आया उसे ले कर मै चिल्लाता हुआ फौरन पेड की तरफ भागा। जब तक मै वहाँ पहुंचा तब तक उन दोनों नें लड़की को पेड पर गले पे फासी दे कर लटका दिया था। और लड़की तड़प रही थी।
जैसे ही मै पैड तक पहुंचा वहाँ कुछ भी नहीं था। वह दोनों दरिंदे और पैड पर लटकी हुई लड़की सब गायब थे। यह सब देख कर मेरे तो हौश ही उड़ गए। गाँव के सब लोग खिड़की से मेरी और देख तो रहे थे पर कोई बाहर नहीं आ रहा था।
मैंने देखा की पेड पर वह काली बिल्ली अब भी मौजूद थी और मुझे ही घूर रही थी। मैंने नज़र घूमा कर उस घर की और देखा जहां पर मै ठहरा हुआ था। मुझे उस घर में कोई टहलता नज़र आया। मेरा तो दिल ही बैठ गया। फिर मैंने उसी मकान की छत की और नज़र डाली तो मैंने देखा की वह दोनों दरिंदे और वह लड्की तीनों एक साथ उस डाकिये के मकान की छत पर खड़े थे। अब मेरी पूरी तरह से फट चुकी थी।
मै समझ चुका था की गलत फट्टे में टांग डाल दी है। मै पूरी रात वहीं चौक पर खड़ा रहा। चूँकि उस पेड के ऊपर भी वह कमीनी, मेरे खून की प्यासी बिल्ली बैठी थी। और डाकिये के घर के अंदर पता नहीं कौन टहल रहा था।
जैसे तैसे कर के सुबह हो गयी तो मैंने फौरन अपना सामान पैक कर डाला और ताला ले कर दरवाज़े की और भागा। अभी मै दरवाजा बंद करने ही वाला था की मेरी नज़र दीवार पर पड़ी। वहाँ जो देखा उसे देख कर मेरी ज़बान हलक से नीचे उतर गयी। उस दीवार पर उसी डाकिये की हार चड़ी हुई फोटो थी जिसने मुझे रहने के लिए यह मकान दिया था। और उस तस्वीर पर उसके जन्म और मरण की तारीख भी थी। वह डाकिया बीस साल पहले मर चुका था। मै जिस से मिला वह उसका प्रेत था।
अपना बैग हाथ में लिए, ताला चाबी वहीं फैंक कर मै, दौड़ कर उस गाँव के बाहर भाग आया। पास के गाँव पर चाय की दुकान वाले को उस मनहूस गाँव का रहस्य पूछा तो उसने कहा कि पेड के पास दिखने वाली लड़की उसी डाकिये की बेटी है जिसे इसी गाँव के सरपंच के दो बेटों नें मार कर लटका दिया था। और डाकिये नें अपनी बेटी की मौत का बदला लेते हुए सरपंच के दोनों बेटों को मार डाला था। फिर सरपंच के डर से खुद ज़हरीली दवाई खा कर आत्म-हत्या कर ली। तभी से उन चारों की आत्मा इस गाँव में भटकती रहती है और त्रांडव मचाती रहती है।
वहाँ जाने पर कहानी तो अच्छी मिल गयी पर,,, ज़िंदगी में कभी ऐसी भुतिया जगह पर रियल हॉरर story खोजनें कभी नहीं जाऊंगा। यह सब बातें फिल्मों में ही Entertaining लगती है हकीकत में अनुभव होने पर जान निकल जाती है।
 
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