प्राचीन पौराणिक कहानियों में ऋषि-मुनियों का जिक्र मिलता है। ऋषि-मुनि ब्रह्म मुहूर्त में जागते थे। इस समय सूर्य उदित नहीं होता। वे स्नान आदि करने के बाद दिन की शुरुआत सूर्य को जल अर्पित करने के साथ करते थे।
ऋषि-मुनियों का जीवन इतना सात्विक होता था कि बड़े-बड़े राजा-महाराजा और धनिक लोग शिक्षा के लिए अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजते थे। ऐसा वह इसलिए करते थे ताकि उनके बच्चे बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए समय की कीमत और ज्ञान को अर्जित करें।
-ऋषि-मुनि सात्विक तरह से जीवन यापन करते थे। वह अपने हर पल का सदुपयोग करते थे। वह हर कार्य समय सारणी से करते थे, ऐसे में उनका हर दिन खुशियों और आध्यात्मिक शक्ति से भरा हुआ होता था।
– वह सुबह जल्दी उठते थे। ऐसे में उनके पास काफी समय होता था। जिससे कि वह अपने दैनिक कार्यों को समय रहते पूरा कर सकें। यह सीख वह अपने गुरुकुल या फिर उनके पास रहने वाले शिष्यों को दिया करते थे।
– वह अपने हर कार्य को मिल बांट कर करते थे। ऐसे में कार्य तो समय पर पूरा होता ही था। बल्कि उनके शिष्यों को भी कार्य सीखने में मदद मिलती थी। यह कार्य घरेलू होता था। जैसे भोजन बनाना, पशुओं की देखभाल करना, यज्ञ के लिए सामग्री तैयार करना आदि। इन कार्यो के लिए वरिष्ठ लोगों द्वारा समय दिया जाता था। और शिष्य नियत समय पर ही सभी कार्य किया करते थे।
इस तरह यदि आधुनिक जीवन में भी हम ऋषि-मुनियों के समय प्रबंधन को आजमाएं तो काफी हद तक जिंदगी को ओर ज्यादा बेहतर बना सकते हैं।