भारत देश का इतिहास एतिहासिक और पौराणिक कहनियों से भरा हुआ है. इन कहानियों में बहुत सी ऐसी कहानियां हैं जो सुनने वाले को हैरान कर दे. जिन चमत्कारों और वरदानों की बात पुराणों में की गई है,उन्हें सुनकर यही लगता है कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है ?

आज हम आपको एक ऐसी ही कहनी बताने जा रहे हैं जिसे पढ़कर आप चकित हो जाएगें और यह सोचने पर मजबूर हो जाएगें कि क्या वाकई ऐसा संभव था?
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यह कहानी है ऋष्यश्रृंग की
यह कहानी एक ऐसे ऋषि की है जिसने अपने जीवन में कभी भी किसी स्त्री को देखा ही नहीं था और जब देखा तो उनका वो अनुभव बेहद अलग और अजीब था. यह कहानी है ऋष्यश्रृंग की जिन्होंने अपने जीवनकाल में लिंगभेद जैसी कोई भी चीज महसूस नहीं की.
लिंगभेद न महसूस करने की वजह से वह कभी स्त्री और पुरुष में अंतर नहीं कर पाए, उनके लिए जिस तरह पुरुष उनके गुरु भाई थे उसी प्रकार स्त्रियां भी उनके लिए गुरु भाई थीं.
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ऋष्यश्रृंग विभांडक ऋषि के पुत्र थे
ऋष्यश्रृंग कश्यप ऋषि के पौत्र और विभांडक ऋषि के पुत्र थे. पुराणों के अनुसार, विभांडक ऋषि के कठोर तप से देवता कांप उठे थे और उनकी समाधि तोड़ने के लिए उन्होंने स्वर्ग से उर्वशी को उन्हें मोहित करने के लिए भेजा.
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