एक ऐसी जगह जहा रमजान में खुल जाते है जन्‍नत के दरवाजे, हर दुआ होती है कुबूल

एक ऐसी जगह जहा रमजान में खुल जाते है जन्‍नत के दरवाजे, हर दुआ होती है कुबूल

रमजान का पवित्र महीना चल रहा है. हर त्योहार मनाने के पीछे कोई वजह होती है. आइए जानते हैं रमजान के पवित्र माह का महत्व.एक ऐसी जगह जहा रमजान में खुल जाते है जन्‍नत के दरवाजे, हर दुआ होती है कुबूलयह भी पढ़े: आपकी इटिंग हैबिट आपके भाग्य को बदल सकती है, जानिये कैसे

क्यों मनाते हैं रमजान?
इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है. रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था. माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं. अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है. 

मुसलमानों के लिए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब ‘कुरान शरीफ’ (नाजिल) जमीन पर उतरी थी. इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत (नमाज पढ़ना और कुरान पढ़ने) में गुजारते हैं. मुसलमान रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं.

कैसे रखते हैं रोजा ?
रोजा रखने के लिए सवेरे उठकर खाया जाता है इसे सेहरी कहते हैं. सेहरी के बाद से सूरज ढलने तक भूखे-प्यासे रहते हैं. सूरज ढलने से पहले कुछ खाने या पीने से रोजा टूट जाता है. रोजे के दौरान खाने-पीने के साथ गुस्सा करने और किसी का बुरा चाहने की भी मनाही है.

कैसे खोलते हैं रोजा ?
शाम को सूरज ढलने पर आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं. रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं. इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है वो कूबुल होती है.

रोजे से छूट किसे ?
बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है. जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है.

रमजान और ईद
ईद के चांद के साथ रमजान का अंत होता है. रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है. ईद का अर्थ ही ‘खुशी का दिन’ है. मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र त्योहार अलग ही खुशी लेकर आता है. ईद के चांद के दर्शन के साथ हर तरफ रौनक हो जाती है.

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