बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में क्रमश: सत्तारूढ़ और विपक्षी दल का समर्थन कर फिर से वही दोहराया है, जो उन्होंने 2012 के चुनावों में किया था. उस समय वह आधिकारिक रूप से विपक्ष का हिस्सा थें.
नीतीश कुमार की पार्टी उस वक्त भाजपा नीत राजग का हिस्सा थी. जिसने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था. साथ ही उपराष्ट्रपति पद के लिए राजग के जसवंत सिंह का समर्थन किया था. बता दें कि उन्होंने अब भी वो ही कारण बताए है, जो पहले बताए थें. उन्होंने प्रणब मुखर्जी को अच्छा उम्मीदवार बताया था, इस बार भी राजग के रामनाथ कोविंद के लिए कहा है.
राजनीतिक विश्लेषक इसे अलग नजरिये से देखते हैं. वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान नीतीश अपने बड़े सहयोगी भाजपा से दूर जाने लगे थे. 2014 के आम चुनावों के लिए नरेन्द्र मोदी को नेता चुने जाने के बाद उन्होंने 2013 में गठबंधन तोड़ लिया था. राजनीतिक परिदृश्य इस बार भी वैसा ही है क्योंकि कई लोग महसूस कर रहे हैं कि नीतीश अपने गठबंधन के सहयोगियों राजद और कांग्रेस से दूर होते जा रहे हैं.
उनकी आलोचना अब भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की तरफ होती है. सर्जिकल स्ट्राइक तथा नोटबंदी जैसे मुद्दों पर उन्होंने मोदी सरकार का अकसर समर्थन किया है, जो उनके आगामी कदम की तरफ इशारा करते हैं. बहरहाल जेडीयू एकमात्र ऐसी पार्टी नहीं है जिसने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में अलग रास्ता अख्तियार किया है. इससे पहले भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी 2012 में प्रणब और सिंह का समर्थन किया था.