एम्स के डा. आरपी सेंटर (डा. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र) में चिकित्सा सामानों की खरीद में करीब आठ करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया है। विभागीय आडिट में मामला पकड़ जाने पर एम्स प्रशासन हरकत में आया और जांच शुरू कराई। जांच में अनियमितता पाए जाने पर एम्स प्रशासन ने आरपी सेंटर के जनरल स्टोर के वरिष्ठ प्रशासनिक सहायक व जूनियर प्रशासनिक सहायक को 10 दिन पहले निलंबित कर दिया है। वहीं लेखा अधिकारी सहित कई कर्मचारियों को हटाकर दूसरे सेंटर में स्थानांतरित कर दिया है। एम्स प्रशासन ने मामले की पुष्टि की है।
हैरानी की बात है कि निचले स्तर के महज दो अधिकारियों पर पूरे मामले का ठीकरा फोड़कर एम्स ने विभागीय कार्रवाई की जिम्मेदारी पूरी कर ली। किसी बड़े स्तर के अधिकारी पर कार्रवाई नहीं की गई है।
फिलहाल एम्स ने इस मामले को दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दिया है। आर्थिक अपराध शाखा इस मामले की जांच भी कर रही है। आर्थिक अपराध शाखा के अनुसार अगले कुछ दिनों में इस मामले में बड़ी कार्रवाई की जा सकती है। आरपी सेंटर के जनरल स्टोर में लंबे समय से यह घपलेबाजी का खेल चल रहा था। जो सामान खरीदा नहीं गया उसका बिल भी एकाउंट विभाग से पास कराकर अधिकारियों व कर्मचारियों ने भारी भरकम रकम पर हाथ साफ कर लिया।
एम्स के सूत्रों का कहना है बड़े स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर इस तरह का घपला संभव नहीं है। एम्स प्रशासन का कहना है कि मामले की जानकारी होने पर तुरंत उसी दिन 18 अगस्त को जांच के लिए तीन सदस्यों की कमेटी गठित की गई। इसके अगले दिन दो संदिग्ध कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया और आर्थिक अपराध शाखा के विशेष आयुक्त कार्यालय में मामला दर्ज कराया गया।
कुछ साल पहले ट्रामा सेंटर में भी हुआ था घपला
एम्स में घपला और भ्रष्टाचार कोई नहीं बात नहीं है। सामानों की खरीद से लेकर डाक्टरों व कर्मचारियों की नियुक्तियों तक में भ्रष्टाचार होता रहा है। कुछ साल पहले ट्रामा सेंटर में भी घपले की बात सामने आई थी। तब एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) संजीव चतुर्वेदी थे। उनके स्थानांतरण के बाद संस्थान में भ्रष्टाचार पर निगरानी कमजोर पड़ गई। मौजूदा मामले की जांच भी विजिलेंस में ना कराकर तीन सदस्यीय कमेटी से कराना सवाल खड़ करती है।
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