एक ऐसा राजा जो अपने न्याय के कारण पूरे विश्व में माना और जाना जाता है। विक्रमादित्य अपने चमत्कारों के कारण भी जाने जाते है। वह मां दुर्गा के बहुत ही बड़े भक्त थे। लेकिन आप ये बात नहीं जानते होगे कि मां का ऐसा मंदिर था जहां पर राजा अपना सिर मां के चरणों में अर्पण करते थे। जी हां चौक गए न लेकिन ये सच है। 52 शक्तिपीठों में एक मानी जाने वाली मां हरसिद्धि देवी।
मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित हरसिद्धि देवी का मंदिर देश की शक्तिपीठों में से एक है। यह वह देवी हैं जो राजा विक्रमादित्य की आराध्य थीं और राजा अमावस की रात को विशेष पूजा अनुष्ठान कर अपना सिर चढ़ाते थे, मगर हर बार देवी उनके सिर को जोड़ देती थीं।
मान्यता है कि सती के अंग जिन 52 स्थानों पर अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ में बदल गए और उन स्थानों पर नवरात्र के मौके पर आराधना का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि सती की कोहनी उज्जैन में जिस स्थान पर गिरी थी, वह हरसिद्धि शक्तिपीठ के तौर पर पहचानी जाती है।
अमावस्या की रात को चढ़ाते थे अपना सिर
पंडित बताते हैं कि यह वह स्थान है, जहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। यहां राजा विक्रमादित्य अमावस की रात को विशेष अनुष्ठान करते थे और देवी को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर चढ़ाते थे, पर हर बार उनका सिर जुड़ जाता था।
किंवदंती है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं तथा रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व है। माता हरसिद्धि की साधना से समस्त प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं।
ऐसा है मां हरिसिद्धि का मंदिर
महाकाल के मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं। गर्भगृह में तीन मूर्तियां हैं। सबसे ऊपर अन्नपूर्णा, मध्य में हरसिद्धि तथा नीचे माता कालका विराजमान हैं। इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल में हुआ था। यहां दो खंभे हैं जिस पर दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं।
देवी के भक्त सच्चिदानंद बताते हैं कि उज्जैन में हरसिद्धि देवी की आराधना करने से शिव और शक्ति दोनों की पूजा हो जाती है। ऐसा इसलिए कि यह ऐसा स्थान है, जहां महाकाल और मां हरसिद्धि के दरबार हैं।