नोट: यह आलेख पौराणिक कहानियों पर आधारित है। जिसका उद्देश्य सिर्फ पौराणिक कथाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करना है। इस आलेख का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचना नहीं है। यह आलेख का उद्देश्य महिलाओं के प्रति सम्मान करने की सीख देता है।
हिंदू पौराणिक ग्रंथ कई रहस्यों से भरे हुए हैं। इनमें ऐसी कई कहानियां हैं, जो महिलाओं के सम्मान के बारे में दर्शाती हैं। कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जो नारी पर हुए अत्याचारों को वर्णित करती हैं।
हालांकि नारी पर अत्याचार करने वाले इन देवताओं को श्राप भी मिला। जिसका उन्होंने पश्चाताप भी किया। ऐसी ही कहानी थी ‘चंद्रमा’ यानी चंद्र देव की।
वह देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा पर मोहित हो गए थे। और उनका अपहरण कर कई दिनों तक भोग-विलास में लिप्त रहे थे। हालांकि जब इस पूरे घटनाक्रम का ज्ञान देवगुरु को हुआ तो उन्होंने चंद्र देव को श्राप भी दिया।
समय बीतता गया और एक नई कहानी सामने आई। श्रीहरि की मंशा इसमें नारी अपमान की नहीं थी। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें यह करना पड़ा। हुआ यूं कि जालंधर नाम का दानव था।
उसकी पत्नी थी वृंदा। वृंदा पतिपरायण सती महिला थी। वृंदा के सतीत्व के कारण जालंधर को पराजित करना असंभव था।
तब जालंधर की मृत्यु के लिए एक रणनीति बनाई गई। और फिर श्रीहरि ने वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया। और उधर भगवान शिव ने जालंधर का संहार कर दिया। इस तरह महादैत्य का अंत हुआ।
लेकिन वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि वह काले पत्थर बन जाएं और इस तरह श्रीहरि शालिक ग्राम के रूप में पूजे जाते हैं।
ऐसा ही कुछ त्रेतायुग में हुआ। जब गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या पर मोहित होकर इंद्र देव ने शीलहरण किया। जब यह बात गौतम ऋषि को पता चली तो उन्होंने इंद्र को श्राप दिया ही, साथ ही अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया।
लेकिन, ऋषि गौतम ने अहिल्या से कहा जब श्रीराम यहां आएंगे तभी उद्धार होगा। यह कहानी बताती हैं कि कहीं न कहीं नारियों के साथ छल हुआ था। लेकिन चाहे किसी ने भी छल किया हो, उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़े। फिर चाहे वह देवता ही क्यों न हों।