खुशी पाने के लिए मनुष्य यहां-वहां भटकता रहता है, जबकि खुशी उसके अंतर्मन में निहित है। दुर्भाग्यवश ज्यादातर लोग यह बात जानते हुए भी इससे अनजान बने रहते हैं। हमारी खुशी का सीधा संबंध संतोष-संतुष्टि से है और हमारा आंतरिक दृष्टिकोण ही हमारे अंदर सच्चे मायने में खुशी की भावना का अहसास कराता है। कुछ लोग यह सोचते रहते हैं कि अमुक वस्तु मिल जाए, तो उनका जीवन खुशियों से भर जाए, लेकिन जब उन्हें वह चीज मिल जाती है, तो भी वे खुश नहीं होते। असल में ऐसे व्यक्ति कभी खुश हो ही नहीं सकते, जो अपने वर्तमान से संतुष्ट न हों और हमेशा भविष्य में अपनी खुशियों की तलाश करते हैं।
वर्तमान में वे एक की कामना करते हैं, तो भविष्य में दो-चार की। इसलिए वे कभी खुशी महसूस ही नहीं कर पाते हैं। कौन व्यक्ति तरक्की या कामयाबी नहीं चाहता, लेकिन अपने जीवन में खुश वही व्यक्ति रहता है, जो अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर गर्व करता है।
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जिस व्यक्ति को अपने वर्तमान में सफलता, पूर्व में अर्जित की गई सफलता से छोटी लगती है और वह भविष्य में और बड़ी सफलता की कामना करता है? वह कभी अपने कार्य से संतुष्ट नहीं हो पाता। इसलिए वह हमेशा खुशी से भी वंचित रहता है। जीवन
में खुश रहने के लिए जरूरी है कि हम अपने जीवन से नीरस रंगों को दूर करके उसमें उजले रंग भरें। सफलता और असफलता हमारे जीवन का हिस्सा हैं। इसलिए सफलता मिलने पर व्यक्ति को न तो ज्यादा अभिमान करना चाहिए और न ही असफलता मिलने पर व्यक्ति को निराश होना चाहिए। दोनों ही स्थिति में मनुष्य को सामान्य बने रहना चाहिए।
सकारात्मक विचारों से हमें ऊर्जा मिलती है और इससे हम अपनी समस्याओं से निपट सकते हैं। जब हमें समस्याएं नहीं होंगी तो हम हमेशा खुश रहेंगे। यूं हमारी खुशी और हमारी उपलब्धियों के बीच सीधा कोई रिश्ता नहीं है। यानी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या और कहां हैं। सिर्फ हमारी सोच से ही हम खुशी को महसूस कर सकते हैं। यदि सोच नकारात्मक हो, तो महल के वैभव में रहने वाला राजा तक अपने आपको दुखी समझेगा, जबकि सकारात्मक सोच में झोपड़ी में रहने वाला मजदूर भी अपने आपको किसी राजा से कम नहीं आंकेगा। अपने व्यवहार में थोड़ा-सा बदलाव करके आप अनेक खुशियां पा सकते हैं।