नई दिल्ली: ट्रिपल तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अहम बातें कही हैं। बोर्ड का पक्ष रखते हुए एजाज मकबूल ने कहा है कि इस्लाम में निकाह एक तरह का करार है और महिलाओं को पूरी छूट है कि वे निकाहनामे में अपने हितों की रक्षा करने वाली शर्तें दर्ज करवा सकें।
बोर्ड के अनुसार निकाहनामा कुबूल करने से पहले महिला के पास चार विकल्प होते हैं इनमें से एक यह भी है कि वह स्पेशल मैरिज एक्टए 1954 के तहत निकाह के पंजीयन की शर्त भी रखे। पांच जजों की संवैधानिक पीठ के सामने बोर्ड की ओर से यह जानकारी भी दी गई है कि महिला निकाहनामे पर बात कर सकती है। वह अपनी तरफ से कुछ शर्तें जुड़वां सकती हैं। वह शौहर को ट्रिपल तलाक का सहारा लेने से रोक सकती है। इतना ही नहीं वह खुद भी ट्रिपल तलाक का इस्तेमाल कर सकती है और तलाक के बाद मेहर की के रूप में मोटी रकम मांग सकती है।
महिला के पास अपना सम्मान बचाए रखने की ये शर्तें उपलब्ध हैं। देश में ट्रिपल तलाक के खिलाफ उठती आवाज के बाद मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड ने भले ही सुप्रीम कोर्ट में उक्त बातें कही हों लेकिन पिछले साल सितंबर में अलग ही राग अलापा गया था। शायरा बानो और अन्य पक्षों द्वारा ट्रिपल तलाक के खिलाफ दायर याचिका के मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि शरिया कानून में केवल पुरुषों को तलाक का अधिकार है क्योंकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में फैसले लेने की क्षमता ज्यादा होती है।
इससे पहले तीन तलाक के मामले में केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक प्रथा को पूरी तरह खत्म कर देती है तो सरकार इसके लिए कानून बनाएगी। इसके साथ ही कहा कि तीन तलाक प्रथा देश व इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार के खिलाफ है।