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औषधीय खेती के लिए वरदान है सरयू किनारे बसी अयोध्या की भूमि

सरयू किनारे बसी अयोध्या की भूमि औषधीय खेती के लिए वरदान है। सहजन, अमलतास, गिलोय, हल्दी, अश्वगंधा, गुलमोहर, आंवला, नीम, जामुन, अर्जुन आदि की खेती से कृषक समृद्ध ही नहीं हो सकते हैं, बल्कि यह उनकी आय का एक बड़ा साधन भी बन सकते हैं, बशर्ते कृषकों को औषधीय खेती के प्रति जागरूक करने के साथ ही बाजार उपलब्ध कराया जाय। सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

यह कहना है डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार चौधरी का। डॉ. चौधरी कहते है कि अयोध्या के कृषक इस बात से अनजान हैं कि यहां औषधीय खेती भी हो सकती है। यहां के कृषक परंपरागत खेती पर ज्यादा ध्यान देते हैं, क्योकि अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यहां कृषकों के पास कृषि योग्य भूमि है, लेकिन उन्हें औषधीय खेती के विषय में बताने और बाजार उपलब्ध कराने वाला कोई नहीं है। कहते हैं कि सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर यहां के कृषकों को औषधीय खेती के प्रति जागरूक किया जाए तो यह एक बड़ा बाजार बन सकता है और कृषकों की आय भी कई गुना हो सकती है। आज जिस गिलोय, अश्वगंधा आदि औषधियों को कोरोना वायरस से लड़ने में एक कारगार औषधि माना जा रहा है, वह यहां की भूमि पर सहजता से होती है। अगर इसकी सुनियोजित ढंग से खेती की जाय तो कृषकों के फायदे का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे ही सहजन वह औषधि है, जिसका गुण शायद ही किसी से छुपा हो। सरयू किनारे की भूमि में अगर सहजन की डाल भी लगा दी जाए, तो पौधा खुद ब खुद पनप जाता है। पर्यावरण के लिए नुकसानदायक पौधों की हो पहचान

अयोध्या: कठ गूलर, जंगली बेर, गाजर घास आदि कई ऐसे पौधें हैं, जो पर्यावरण के साथ ही मानव जीवन के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं। इन पौधों की कोई उपयोगिता नहीं है। पर्यावरणविदों का मानना है कि ऐसे पौधों के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। यह पौधे खेती योग्य भूमि के लिए घातक तो है ही, मिट्टी की उर्वरा क्षमता को भी प्रभावित करते हैं।

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