समाजवादी पार्टी में शिवपाल सिंह यादव पूरी तरह से हाशिये पर आ गए हैं। सपा की स्थापना के बाद यह पहला मौका है जब चुनाव में उनकी कोई भूमिका नहीं है। टिकट के दावेदार उनके पास नहीं पहुंच रहे हैं। प्रचार के लिए भी डिमांड नहीं है। जो कभी उनके नजदीकी थे, उन्होंने भी दूरी बना ली है।

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मुलायम के लिए उन्होंने कई बार जीवन को जोखिम में डाला। उनके लिए मुकदमे झेले। मुलायम जब प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए तो चुनाव प्रचार का जिम्मा शिवपाल पर ही होता था। यही वजह है कि मुलायम ने हमेशा शिवपाल को संगठन और सरकार में तवज्जो दी।
उन्हीं की जसवंतनगर सीट से शिवपाल 1996, 2002, 207 और 2012 में विधायक चुने गए। उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बनाया। अखिलेश सरकार में चार साल तक वह ताकतवर मंत्री थे।
सीएम अखिलेश यादव ने उनके रिश्तों में तल्खी मंच पर भी सार्वजनिक हुई। किसी जमाने में टिकट तय करने और चुनाव की रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले शिवपाल अब पार्टी में किनारे लग चुके हैं।देखे वीडियो लखनऊ के बाबा किस तरह औरतो को अपनी हवस के जाल में फंसाते है…
करीबियों ने बनाई दूरी
शिवपाल के प्रति सीएम अखिलेश के तेवरों के बाद पार्टी नेताओं ने उनसे दूसरी बनानी शुरू कर दी है। उनके आगे-पीछे चक्कर लगाने वाले मंत्री व विधायक भी कतरा रहे हैं। प्रचार की डिमांड वाले फोन भी नहीं आ रहे हैं। टिकट के दावेदार भी शिवपाल के पास नहीं जा रहे क्योंकि डर है कि इसकी खबर से टिकट न कट जाए।
वह दो दिन ने अपने क्षेत्र के लोगों से मिल रहे हैं। उनके साथ बैठक कर रहे हैं। फिलहाल पार्टी के विवाद पर बोलने से बच रहे हैं।सिर्फ पद ही नहीं, पार्टी दफ्तर से भी बेदखल
शिवपाल को सरकार और पार्टी से ही नहीं, सपा दफ्तर से भी बेदखल कर दिया गया। पार्टी के सिंबल पर निर्वाचन आयोग का फैसला आने से पहले ही अखिलेश समर्थकों ने दफ्तर पर कब्जा कर लिया था। शिवपाल उस दिन से सपा कार्यालय नहीं गए। वह कार्यकर्ताओं से अपने विक्रमादित्य स्थित आवास पर ही मिलते हैं।
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