कभी भारत का पक्का दोस्त रहा रूस अब चीन और पाकिस्तान के करीब होता जा रहा है. अगले कुछ साल भारत और रूस की दोस्ती के लिए परीक्षा वाले वर्ष साबित होंगे. आखिर ऐसा क्या हो गया कि अब रूस हमारे देश से दूरी बना रहा है, आइए जानते हैं इसकी वजहें.अनुमान के मुताबिक हाल में रूस में हुए राष्ट्रपति के चुनावों में पुतिन फिर से छह साल के लिए राष्ट्रपति चुने गए हैं. वह स्टालिन के बाद सबसे लंबे अवधि तक सत्ता में रहने वाले रूसी नेता बन गए हैं. दूसरी तरफ, चीन में शी जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का कानून पारित हो गया है. इस तरह दो बड़े देशों में एक तरह के अधिनायकवादी सत्ता का मजबूत होना, दुनिया की उदार व्यवस्था के लिए चिंता की बात है.
बदल रही हैं दोनों की नीतियां
भारत लंबे समय तक रूस का दोस्त रहा है, लेकिन तेजी से बदलती भू-राजनीतिक सच्चाई में अब भारत भी अपनी नीतियों में बदलाव ला रहा है. ऐतिहासिक रूप से देखें तो रूस ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन किया है और उसने लगातार कश्मीर मसले पर आने वाले प्रस्तावों पर वीटो लगाए हैं. लेकिन अब दक्षिण एशिया में रूस की प्राथमिकताएं बदल रही हैं.
कश्मीर पर पाकिस्तानी नजरिए का किया समर्थन
पिछले साल दिसंबर में इस्लामाबाद में छह देशों के स्पीकर्स का पहली बार सम्मेलन हुआ जिसके संयुक्त घोषणापत्र में कश्मीर पर पाकिस्तान के नजरिए का समर्थन किया गया. इस घोषणापत्र पर अफगानिस्तान, चीन, ईरान, पाकिस्तान, रूस और टर्की ने हस्ताक्षर किए थे. इसमें कहा गया था कि, ‘वैश्विक एवं क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए भारत और पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर मसले का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के मुताबिक शांतिपूर्ण समाधान करना चाहिए.’
चीन के ओबीओआर से जुड़ने की नसीहत
दिसंबर में ही नई दिल्ली की अपनी यात्रा के दौरान रूसी विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि भारत को चीन के वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) पहल में शामिल होना चाहिए. इसी तरह उन्होंने अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के एक ब्लॉक बनाने पर भी नाखुशी जाहिर की. इस तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो संरचनात्मक बदलाव हो रहे हैं, उससे भारत और रूस में अब दूरी बनने लगी है.
रूस को जहां अमेरिका और कई यूरोपीय देशों से दिक्कत है, वहीं भारत के लिए चिंता का मसला अलग है. भारत को अपने उत्तरी पड़ोसी चीन की नकारात्मक सक्रियता से निपटना है. दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में परंपरागत तौर पर भारत का प्रभुत्व रहा है, लेकिन अब इसमें चीन दखल देने लगा है. भारत और चीन के बीच सत्ता संतुलन बिगड़ने से सीमा पर स्थिति ज्यादा अस्थिर हो रही है.
दूसरी तरफ, चीन-पाकिस्तान गठजोड़ बढ़ने का मतलब है कि भारत को दोहरे मोर्चे पर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. भारत की रूस से करीबी ज्यादातर प्रतिरक्षा के मोर्चे पर रही है और इसमें आर्थिक मोर्चा कम महत्व का रहा है. रूस खुद पश्चिम से मिल रही चुनौतियों की वजह से चीन के साथ पींगे बढ़ा रहा है. ऐसे में भारत की यह मजबूरी है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए वैकल्पिक मंच तैयार करे और नए दोस्त बनाए.